लोमश ऋषि की तपोस्थली : रिवालसर यानि हृदयलेश

रिवालसर नामक सुंदर स्थान हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित है. यहाँ की रिवालसर के नाम से प्रसिद्ध झील मनमोहक तो है ही इसका आस- पास का प्राकृतिक सौन्दर्य अनायास ही पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाता है.

देवदार के वृक्ष करतें हैं अभिवादन

चीड़ और देवदार के वृक्ष सभी का अभिवादन करते प्रतीत होते हैं. स्कन्द पुराण के प्रथम और द्वितीय और तृतीय अध्यायों में हृदयलेश का वर्णन लोमश ऋषि की तप स्थली के रूप में आता है. हृदयलेश अर्थात “झीलों का राजा ” हद – तालाब, आलय- स्थान , और ईश -राजा.

हृदयलेश है पुराना नाम

रिवालसर का प्राचीन नाम हृदयलेश है. पूर्व काल में लोमश ऋषि जी हिमालय पर्वत में तपस्या कर रहे थे. इसी दौरान लोमश ऋषि ने ब्रह्मा पर्वत पर चढ़कर एक हद यानि तालाब देखा जो अत्यंत ही सुंदर और जिसके चारों ओर सुंदर वृक्षों की छाया, विभन्न प्रकार के पक्षियों से सुशोभित तथा जिसका जल अत्यंत निर्मल व शुद्ध है जिसमें अप्सराएँ जल क्रीड़ायें कर रही हैं. इस सुंदर तालाब को देखकर ऋषि प्रसन्न हो गए तथा पर्वतों से घिरे इस तालाब में स्नान करने के बाद तपस्या में बैठ गए.

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जब ऋषि ने देखा स्वपन

कुछ देर बाद ऋषि को निद्रा आ गई. स्वप्न में उन्होंनें भस्म ओर माला धारण किये हुए यति को देखा.उन्होंनें लोमश ऋषि को इस स्थान पर तप करने को कहा.तब लोमश ऋषि ने इस तालाब की पश्चिम दिशा में बैठकर कठोर तपस्या करनी शुरू की. तीन माह तक कठोर तप करने पर इन्द्र भयभीत हो गए. उन्होंनें लोमश ऋषि की तपस्या को भंग करना चाहा लेकिन सीढ़ी विघ्न और बाधाओं के बावजूद तपस्या करते रहे.

 

भगवान शिव ने दिया वरदान

भगवान शिव ने ऋषि को यह वरदान दिया कि महाकल्प पर्यन्त जीवित रहेंगे और मन के वेग से वायु में भ्रमण कर सकेंगे. इसके पश्चात ऋषि ने भगवान शिव से इस स्थान के महत्व के बारे में पूछा तो भगवान ने कहा कि यह प्रश्न पार्वती से करो तो इसी संवाद के दौरान विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्रादि देवता, किन्नर, नागादि, तीर्थराज प्रयाग, पुष्कर सहित सभी पवित्र तीर्थ तथा नदियाँ यहाँ उपस्थित हुए.

जब पांचों देवता झील में लगे तैरने

ब्रह्मा,विष्णु,गणपति,सूर्य एवं शिव पार्वती सहित पांच देवताओं ने इस भूखंड में निवास कर झील में तैरने लगे तथा यहाँ इन टिल्लों बेड़ों में निवास का निश्चय किया. इस प्रकार रिवालसर को पंचपुरी {यानि पांच देवताओं का निवास स्थान} के नाम से भी जाना जाता है.

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बसोआ उत्सव की रहती है धूम

हर वर्ष यहाँ बैशाख व मकर सक्रांति को प्राचीन काल से चला आ रहा बसोआ उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि ओर जन्माष्टमी के दिन जो प्रातः काल में उठकर इस सरोवर में स्नान करने के बाद देवताओं का तर्पण, जल जीव का पूजन कर ब्राह्मणों को दान एवं भोजन करवाता है उसके सात कुलों के पित्तर स्वर्गलोक को जाते हैं, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह बैकुण्ठ को प्राप्त होता है .

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