पहला दिन
सुबह जल्दी उठें और बरोट के लिए निकलें. रास्ते में झटिंगरी, टिक्कन में रुकें. देव पशाकोट मंदिर देखें. देव पशाकोट का नया मंदिर जो कि अभी हाल ही में बना है जलधारा के मुहाने पर स्थित है. उसे जरूर देखें.
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इस मंदिर के लिए टिक्कन से रास्ता जाता है. टिक्कन में रुक कर पूछताछ कर लें. टिक्कन के आसपास सुन्दर दृश्यावली है. टिक्कन में हल्का नाश्ता पानी किया जा सकता है.
(देव पशाकोट नया मंदिर से दृश्य. पृष्ठभूमि में टिक्कन क़स्बा नजर आ रहा है)
इसके बाद बरोट के लिए निकलें. बरोट में पहुँच कर हाइडल प्रोजेक्ट के लिए बने फीडर चैनल, जलाशय (reservoirs) और प्रौजेक्ट देखें. ध्यान रहे कि reservoirs पर कैमरा ले जाना मना है. इसके बाद शानन-बरोट ट्रॉली लाईन के छोर को देखने जाएँ. आस पास अंत्यंत सुन्दर दृश्य हैं. ऊहल नदी और दूसरी सहयोगी नदी लंबाडग के किनारे काफी खाली जगहें है. यहाँ पर पिकनिक मनाई जा सकती है. ऊहल नदी में ट्राउट मछली का शिकार किया जा सकता है लेकिन इसके लिए संबधित विभाग से अनुमति लेनी अनिवार्य है. सामान्यत: ट्राउट मछली का शिकार 1 नवंबर से 28 फ़रवरी तक प्रतिबंधित रहता है क्योंकि यह इन मछलियों का प्रजनन काल होता है.
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बरोट में ही सरकारी मछली पालन केन्द्र है. पकाने-खाने योग्य मछली यहाँ से ली जा सकती है. स्थानीय लोगों से इस बारे में पूछताछ कर लें. स्थानीय लोग, अधिकतर, बहुत मिलनसार और सहयोगी प्रवृति के हैं सो बातचीत करने में झिझक न दिखाएँ.
रात का ठहराव बरोट में ही करें. यहाँ पर ठहरने के लिए कुछ पेईंग गैस्ट हाउस, कुछ निजी गैस्ट हाउस, और दो सरकारी गैस्ट हाउस हैं. सरकारी गैस्ट हाउस की बुकिंग जोगिन्दर नगर में होती है इसलिए पहले से प्रबंध कर लें. इस पेज पर गैस्ट हाउस के नाम, फोन नंबर दिए हैं.
दूसरा दिन
बरोट से वापिस जोगिन्दर नगर (के शानन) के लिए निकलें. शानन में ही मुख्य बिजली घर है जिसे देखा जा सकता है. शानन से विन्च कैम्प तक (लगभग डेढ़ कि. मी.) रोप वे ट्राली चलती है जिसकी राईड ली जा सकती है. सामान्यत: यह दिन में दो बार चलती है. पहले से पूछताछ कर लें.
इसके बाद छपरोट जाएँ. छपरोट शानन से लगभग ८ कि. मी. की दूरी पर है. यहाँ पर बस्सी पावर हाउस के लिए बना जलाशय (reservoirs) है. छपरोट एक बहुत अच्छा पिकनिक स्थल है. यहाँ से जोगिन्दर के दूर दूर के गाँव को निहारा जा सकता है. यहाँ कुछ समय बिता कर मछ्याल के लिए निकलें. मछ्याल में नदी पर बनी प्राकृतिक झील है. यहाँ पर बहुतायत में मछली पालन होता है. यहाँ पर बड़ी-बड़ी महाशीर मछलियाँ देखी जा सकती है. मछलियों को आटा खिलने के रोमांच का आनंद लिया जा सकता है. यहाँ पर मछिन्द्र देव और विष्णु को समर्पित मंदिर भी है. मछयाल के समीप चुल्ला हाईडल प्रोजेक्ट के कार्य को देखा जा सकता है. यहाँ पर भी चुल्ला हाईडल प्रोजेक्ट के लिए जलाशय (reservoirs) और सामने पहाड़ी को काट कर १३ कि. मी. सुरंग बनी है जिसमें से जलाशय का पानी पहाड़ी के दूसरी तरह ले जाया जा रहा है.
धार्मिक विचारों वाले और मंदिरों में जाने की इच्छा रखने वालों के लिए माता चतुर्भुजा मंदिर उपयुक्त है. यह मंदिर जोगिन्दर नगर से २५ कि. मी. और मछयाल से १७ कि. मी. है. मुख्य सड़क से मंदिर तक १ कि. मी. पैदल चढ़ाई है. मंदिर के परिसर से व्यास नदी के तट पर बसने वाले दूर दूर के गाँव भी देखे जा सकतें है.
मछ्याल से जोगिन्दर नगर वापसी पर बस्सी पावर हाउस से हो कर निकलें. बस्सी पावर हाउस ऊहल परियोजना का दूसरा चरण है जिसके प्रोजेक्ट को यहाँ पर देखा जा सकता है. बस्सी से मझारनू गाँव हो कर जाए. मझारनू में सदियों पुराना लक्ष्मी नारायण मंदिर स्थित है. यहाँ से वापिस जोगिन्दर नगर लौटें और शाम जोगिन्दर नगर में सैर करते और शौपिंग करते हुए बिताये. नगर में ही पड़ते आयुर्वेदिक शिक्षण संस्थान, कृषि विकास केंद्र, सरकारी कॉलेज आदि रमणीय स्थल हैं. रात को जोगिन्दर नगर में ही किसी होटल में विश्राम करें. होटल सिटी हार्ट ढेलु मोड़ की खूबसूरत लोकेशन पर बना अच्छा और सुलभ होटल है. और भी कई सारे अच्छे होटल जोगिन्दर नगर में हैं जहाँ खाना और रहना किया जा सकता है. पर्यटन विभाग द्वारा संचालित एक सरकारी होटल ‘उहल’ भी है.
तीसरा दिन
त्रिवेणी, ढेलू, ट्रेन द्वारा बैजनाथ, बीड, बिलिंग, बौद्ध मठ, आहजू..
…अभी और लिखा जा रहा है.. जल्दी से पुन: इस पेज पर लौटें..