हिमाचल प्रदेश के अधिकांश भागों में भादों यानि भाद्रपद की अमावस्या को डैनी वांस(डैणवाँस, डुंगवांस) के नाम से जाना जाता है। लोक मान्यता है कि इस दिन डायनें, तांत्रिक, जादू टोना करने वाले, गुर और चेले आदि घोघरधार जाते हैं जहां पर वे देवता और डायनों के बीच अंतिम युद्ध में भाग लेते हैं।
उत्तर भारत में भाद्रपद महीने को काला महीना कहा जाता है। मान्यता है कि काला महीना शुरू होते हैं सभी देवता मंदिरों को छोड़ देते हैं। इस माह के दौरान देवता युद्ध में चले जाते हैं तथा जादू टोना हावी हो जाता है। देवता विभिन्न स्थानों में डायनों के साथ युद्ध करते हैं।
इस कड़ी में अंतिम और निर्णायक युद्ध घोघरधार में होता है। इस युद्ध के विजेता का फ़ैसला पत्थर चौथ के दिन होता है। इस युद्ध का पूरा हाल और लागत में लगाए गए लोगों के नाम नागपंचमी के दिन प्रदेश के विभिन्न मंदिरों में सुनाए जाते हैं। जोगिन्दर नगर से 22 किमी दूर चतुर्भुजा माता मंदिर में भी यह घोषणा की जाती है।
झाड़ू पर बैठ कर जाती है डायनें
लोक मान्यता के अनुसार भाद्रपद महीने में हिमाचल प्रदेश के अलग अलग स्थानों से सभी डायनें झाड़ू पर बैठ कर घोघरधार के मैदान में पहुँचती हैं और युद्ध करती हैं। किवदंती के अनुसार डायनें युद्ध में पलड़ा भारी होते ही लोगों, जानवरों और खेतों आदि को लागत पर लगाती है।
यदि डायनें युद्ध में हार जाती हैं तो लागत में लगे लोगों के जीवन को ख़तरा होता है। युद्ध के दौरान लागत में लगाए जाने से बचने के लिए लोगों को अभिमंत्रित सरसों के दाने दिए जाते हैं जो वे अपनी जेब में रखते हैं।
कहाँ है घोघर-धार?
धार किसी पहाड़ी यार पर्वत को कहा जाता है। जिला मंडी के मंडी-पठानकोट नैशनल हाईवे पर स्थित पद्धर और ग्वाली के बीच उत्तर-पूर्व की पहाड़ी के चोटी पर स्थित है घोघर-धार। घोघर-धार एक अधिकांश समतल क्षेत्र है जहाँ देवों और डायनों के मध्य युद्ध होता है. यहाँ युद्ध का स्थान चिन्हित है और युद्ध के समय कोई भी उस स्थान में नहीं जाता है।
लोग जलाते हैं दीया
वैसे तो भादों मास में घरों के बाहर दिया जला कर रखा जाता है ताकि जादू टोना का उन पर प्रभाव न हो। खासकर डैणवाँस के दिन सब लोग दिया जरूर जलाते हैं। इस दिन ग्रामीण लोग अपने पशुओं को पड़ने वाले पिंथडो/चिड़णों को जलाया जाता है।साथ में कहते हैं कि डायनों ले जाओ अपने साथ घोघरधार।
हालाँकि चिड़णों को जलाने की परम्परा हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में चिड़ाणु त्यौहार के रूप में मनाई जाती है। काले महीने यानि भादों में नई नवेली दुल्हनें भी अपने मायके चली जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि नयी दुल्हनों के लिए अपनी सास को देखना शुभ नहीं होता है इसलिए उन्हें मायके में भेज दिया जाता है। कोई भी शुभ कार्य भाद्रपद महीने में नहीं होता है।
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नवरात्रों में निकलता है युद्ध का परिणाम
देवताओं और डायनों के बीच होने वाले युद्ध का परिणाम नवरात्रों में देवी देवताओं के गुर या पुजारी बताते हैं। अगर देवताओं की जीत हो तो सारा साल सुखमय रहता है, लेकिन फसलों के लिए अच्छा नहीं होता है। वहीं अगर डायनों के जीतने पर जान-माल का नुक़सान होता है, जबकि फसल अच्छी होती है।
माँ चतुर्भुजा मंदिर में भी सुनाया जाता है परिणाम
बसाही धार में स्थित माँ चतुर्भुजा के दरबार में नागपंचमी के दिन विशेष भीड़ रहती है. इस दिन पुजारी द्वारा हार जीत का परिणाम सुनाया जाता है.
इसके अलावा जो भी आदमी लागत पर लगाए जाते हैं उनके नाम भी बताए जाते हैं. लागत पर लगाया हुआ आदमी उसके बाद मंदिर में पूजा अर्चना करने आता है ताकि लागत का प्रभाव कम हो सके.
मंदिरों में रात भर होम का आयोजन होता है तथा पुजारी अंगारों पर खेलकर भक्तों पर आई बला को टालते हैं।
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