धरती हिली तो मिट जाएगा छोटी काशी का वजूद

मंडी : भूकंप के लिए अति संवेदनशील छोटी काशी मंडी का वजूद एक झटके में मिट सकता है। शहर में अधिकांश भवन ढलान पर बने हुए हैं। ये भवन भूकंप रोधी या भूस्खलन से बचाव के लिए सक्षम नहीं हैं। ऐसे में प्राकृतिक आपदा आने पर शहर का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। सरकार ने नियम बनाए हैं कि 45 डिग्री या इससे अधिक ढलान होने पर भवन नहीं बनाया जा सकता। इसके बावजूद शहर के अधिकतर लोगों ने नियमों को ताक पर रखकर भवन बनाए हैं। आधे से ज्यादा मंडी शहर पहाड़ी पर ही टिका हुआ है। टारना से लेकर रामनगर तक अधिकतर भवन पहाड़ी पर ढलान पर बने हुए हैं। ये भवन भूकंपरोधी या भूस्खलन से बचाव के लिए मजबूत नहीं हैं।

पुरानी मंडी के अलावा जेल रोड व पैलेस में भी ऐसी ही स्थिति हैं। मानकों को दरकिनार कर बनाए गए ये भवन जोरदार भूकंप या भूस्खलन से ताश के पत्तों की तरह गिर जाएंगे। वहीं, बीच शहर में बने पुराने जर्जर भवनों की दशा तो इससे भी खराब है। बंटवारे को लेकर भाइयों में आपसी विवाद के चलते न तो पुराने असुरक्षित भवन गिराए जा रहे हैं और न ही सुरक्षा के लिहाज से उनकी मरम्मत की जा रही है। ऐसे में प्राकृतिक आपदा आने पर ये भवन भी मटियामेट हो जाएंगे। साथ ही अन्य भवनों के लिए भी खतरा बने हुए हैं।

जिले में भी 45 डिग्री की ढलान को नजरअंदाज कर बने हैं कई भवन

हाल ही में शिमला जिले के हाटकोटी में ढलान पर बनी पांच मंजिला इमारत भरभराकर गिर गई। जिला मंडी में भी 45 डिग्री की ढलान को नजरअंदाज कर कई भवन बने हैं, जिनका भूकंप की नजर से संवेदनशील इस क्षेत्र में हिलना भी भरभराने में बदल सकता है। भूकंप की दृष्टि से मंडी जिला जोन पांच में आता है। ऐसे में यहां बने असुरक्षित भवन भविष्य के लिए खतरे की घंटी हैं। हैरत की बात यह है कि नगर परिषद द्वारा धड़ाधड़ भवनों के नक्शे पास कर दिए जाते हैं, लेकिन निर्माण के लिए तय मानकों का जरा भी ख्याल नहीं रखा जाता। यही नहीं नक्शे पास करने के बाद अधिकतर भवनों के निर्माण कार्य का भी निरीक्षण नहीं किया जाता है और भवनों को पास कर दिया जाता है। ऐसे में लोग मनमर्जी से भवनों का निर्माण कर रहे हैं।

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स्रोत :दैनिक जागरण

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