तरंगड़ी महादेव योरा जोगिंदर नगर (वीडियो सहित वृत्त-चित्र)

आदर्श राठौर

देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की तहसील जोगिन्दर नगर में एक छोटा सा गांव है योरा… इस गांव के छोर में है तीन जल धाराओं यानी खड्डों का संगम… इस संगम को कहते हैं- त्रिवेणी… यही वो जगह है जहां पर सुक्कड़, बजगर और न्हैरू नाला मिलते हैं और यहीं से शुरुआत होती है रणा खड्ड की जो आगे चलकर ब्यास नदी में गिरने से पहले कई किलोमीटर तक लोगों का कल्याण करती है.

तरंगड़ी के नाम से जानते हैं लोग

स्थानीय लोग इस जगह को कहते हैं तरंगड़ी. यहां पर एक पुल बना है जो योरा को भालारिढ़ा, टिकरू से जोड़ता है. लेकिन ये पुल तो बस कुछ सालों पहले ही बना है.इससे पहले बरसात के दिनों में उफनती नदियों की वजह से सिंकदर धार के गांव जोगिन्दर नगर से कट जाया करते थे. ऐसे में लोगों को या तो मच्छयाल के पुल तक जाना पड़ता था या फिर लोअर चौन्तड़ा के रेलवे ब्रिज तक जाना पड़ता था. साफ है कि सिर्फ नदी को पार करने के लिए बहुत ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती थी.

झूला पुल था यहाँ

लेकिन गांव भालारिढ़ा में रहने वाले स्वर्गीय भोलू राम राठौर जी ने पहल की और त्रिवेणी संगम के पास लोहे की रस्सियों और बांस की बल्लियों से एक झूला पुल तैयार कर दिया. आज तो इस ऐतिहासिक झूला पुल के अवशेष ही बचे हैं लेकिन मार्च 2003 से पहले तक इलाके के लोगों के लिए रणा खड्ड को पार करने का यही एकमात्र जरिया था. रस्सियों का ये पुल कहलाया तरंगड़ी.. और इसी पुल के नाम पर जगह को आज भी तरंगड़ी कहकर बुलाया जाता है.

महात्मा जुलाई नाथ जी ने की थी यहाँ तपस्या

इस जगह पर व्याप्त एकांत और पवित्रता को देखते हुए आज से करीब 40 साल पहले एक सिद्ध महात्मा जुलाई नाथ जी ने अपना डेरा डाला था. तरंगड़ी के पुल से सामने की ओर दिखती है एक कुटिया. महात्मा जुलाई नाथ जी ने प्रारम्भ में इस चट्टान में बनी गुफा में अपना धूनी रमाई थी और बाद में थोड़ा आगे बनाई गई कुटिया में… महात्मा जी यहीं पर एकांत में ध्यानमग्न रहा करते थे.

वनगुफा बनौण में भी कर चुके थे तपस्या

इससे पहले वो बनोण की कुटिया और कांगड़ा में भी कुछ वक्त तपस्या कर चुके थे. पूरे इलाके के लोग अपनी समस्याएं और कष्ट लेकर उनके पास आते और महात्मा जी चुटकियों में उनका निदान कर देते. महात्मा जी ने अपनी जड़ी-बूटियों के ज्ञान से दूर-दूर से आने वाले लोगों की कई दु:साध्य बीमारियों का इलाज किया. उन्होंने अपने प्रिय भक्त भोलू राम राठौर को भी जड़ी-बूटियों से दुसाध्य बीमारियों का इलाज करने की दीक्षा दी. भोलू राम जी भी आजीवन जड़ी-बूटियों से लोगों की भयंकर बीमारियों का इलाज करते रहे. उनके स्वर्गवास के बाद भी उनके परिवार के सदस्य आज भी इस परंपरा को बनाए रखते हुए रोगियों को निशुल्क औषधियां दे रहे हैं.

150 वर्ष आयु थी जुलाई नाथ जी की

लोकहित में कई चमत्कार करने वाले महात्मा जुलाई नाथ जी की आयु खुद चमत्कार थी. बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि उनकी आयु कम से कम 150 वर्ष थी. एक छोटी से पतीली में खाना पकाकर बीसियों लोगों को पेटभर खाना खिलाने वाले महात्मा जुलाई नाथ जी पीड़ितों के उद्धार में लगे रहे. उनकी इच्छा थी उन्हें समाधि भी तरंगड़ी में बनी कुटिया में दी जाए. उनके निर्वाण प्राप्त करने पर उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए तरंगड़ी की इस कुटिया में ही उन्हें समाधि दी गई है. इस तरह से इस जगह का महत्व और भी बढ़ जाता है. देवों के देव महादेव… भोले नाथ का शिवलिंग रूप में स्वयं उपस्थित रहना, महात्मा जुलाई नाथ जी की कुटिया एवं समाधि और परमभक्त भोलू राम राठौर जी की निस्वार्थ सेवा भावना और परोपकारिता का प्रमाण… तरंगड़ी में मिलता है.

शिव मंदिर और हनुमान मंदिर है यहाँ

ये चमत्कार ही है कि जिस रस्सियों के पुल के अवशेष को आप देखेंगे, उस पर से आते-जाते लोगों को डर लगता था. लेकिन कभी कोई हादसा नहीं हुआ. जहां स्वयं भोलेनाथ निवास करते हों, वहां पर सभी आशंकाएं और अनहोनियां समाप्त हो जाती है. जो कोई भी मन में सच्ची श्रद्धा और पूर्ण समर्पण रखते हुए पवित्र शिवलिंग की पूजा करने के बाद महात्मा जी की कुटिया में माथा टेके, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. शिवलिंग के पास चट्टान से निकलने वाली प्राकृतिक जल धारा औषधीय गुणों से भरी है. क्योंकि पानी चट्टान में उगी जड़ी-बूड़ियों से होकर रिसता है. इस पानी की एक-एक बूंद अमृत समान है. तरंगड़ी में आने मात्र से मन ऊर्जा से भर जाता है और नकारात्मक विचार मिट जाते है. इसका कारण है यहां का स्वच्छ हवा-पानी और प्राकृतिक सुन्दरता और दैवीय वातावरण… हर-हर महादेव…

तरगंड़ी तक पहुंचने का रास्ता:

इसयह पवित्र स्थान जोगिन्दर नगर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जोगिन्दरनगर से बैजनाथ की तरफ जाने पर ढेलू मोड़ पर होटल अंशदीप के पास नीचे की तरफ एक लिंक रोड़ जाता है. इस सड़क पर एक किलोमीटर चलने के बाद बाईं तरफ को एक और लिंक आएगा जो सीधे योरा जाता है. करीब 4 किलोमीटर आगे चलकर एक पुल आएगा जिसे देख आप खुद समझ जाएंगे कि आप तरंगड़ी में पहुंच चुके हैं.

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