प्रकृति ने कई पेड़ पौधों को औषधीय गुणों से भरपूर रखा है. इन्हीं में से एक कचनार {जिला मंडी में स्थानीय नाम “कराले” है} का पेड़ भी है जो हिमाचल में निचले क्षेत्र में अधिकतर जगह में पाया जाता है. मार्च मध्य के बाद फूलों से लदने वाले इस पेड़ की पत्तियां, तना व फूल आदि सभी उपयोगी हैं. कचनार की गणना सुंदर व उपयोगी वृक्षों में होती है. इसकी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से गुलाबी कचनार का सबसे ज्यादा महत्व है. कचनार के फूलों की कली लंबी, हरी व गुलाबी रंगत लिए हुए होती है. आयुर्वेद में इस वृक्ष को चामत्कारिक और औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है. कचनार के फूल और कलियां वात रोग,जोड़ों के दर्द के लिए विशेष लाभकारी हैं. इसकी कलियों की सब्जी व फूलों का रायता खाने में स्वादिष्ट और रक्त पित्त, फोड़े, फुंसियों को शांत करता है.
कचनार के गुण –
1. कचनार के फूल थायराइड की सबसे अच्छी दवा हैं.
2. गले में गांठें हो गई हों तो कचनार की छाल को चावल के धोवन में पीसिए, उसमें आधा चम्मच सौंफ का पाउडर मिलाकर खा लीजिए.
3. बवासीर में कचनार की कलियों के पाउडर को मक्खन और शक्कर मिलकर 11 दिन खाएं. आंतों में कीड़े हों तो कचनार की छाल का काढ़ा पिएं.
4. लिवर में कोई तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पिएं.
5. गले की कोई भी ग्रंथि बढ़ जाने पर कचनार के फूल या छाल का चूर्ण चावलों के धोवन में पीस कर उसमे सोंठ मिलाकर लेप भी किया जा सकता है और पिया भी जा सकता है.
6. कचनार की टहनियों की राख से मंजन करेंगे तो दांतों में दर्द कभी नहीं होगा, अगर हो रहा होगा तो खत्म हो जाएगा.
7. खून शुद्ध करने के लिए कचनार की कलियों का काढ़ा पी सकते हैं.
8. मुंह में छाले होने पर कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
9. पेट में गैस होने पर कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है.
10. सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से पेट फूलना व गैस की तकलीफ दूर होती है.
11. जीभ व त्वचा के सुन्न होने पर कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से इस रोग में लाभ होता है.