आज विश्व गौरेया दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन क्या आज भी आपके आंगन में चहकती है गौरेया ?? यह चिंता का विषय है कि हमारे आंगन में चहकने वाली गौरेया अब विलुप्ति के कगार पर है. कभी गौरेया से भरा रहता था आंगन जब प्रेम से अनाज के कुछ दाने उसे देते थे.
सबसे बड़ा दुश्मन है रेडिएशन
गौरेया का लुप्त होना जैव विविधता के लिए बहुत बड़ा खतरा है. कभी घर -आँगन की शोभा कही जाने वाली गौरेया का आज सबसे बड़ा दुश्मन रेडिएशन है. इसी के कारण यह प्रजाति आज विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है.
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प्रजनन चक्र हो रहा प्रभावित
पक्षी वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का कहना है कि जिस प्रकार से मोबाइल टावरों की संख्या लगातार बढती जा रही है उससे रेडिएशन का खतरा और भी बढ़ता ही जा रहा है. इसी के कारण गौरेया का प्रजनन चक्र भी प्रभावित हो रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो जो थोड़ी बहुत गौरेया जो कभी कभार नजर आ आती है वह भी कहानियां बन जाएँगी.

कच्चे घर न होना भी है विलुप्ति का कारण
इस प्रजाति के विलुप्त होने के अन्य कारण कच्चे घरों का न होना, प्रदूषण, कृषि के घटते दायरे और फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग को बताया जाता है. मगर इसके विलुप्त होने के यही कारण नहीं हैं. गौरेया के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण रेडिएशन है जो मोबाइल टावरों के कारण होता है.
अब नहीं चहकती आंगन में
जब से रेडिएशन बढ़ा है तब से गौरेया खतरे में है. करीब आठ दस वर्ष पहले तक यह गौरेया हर घर आंगन में चहकती थी लेकिन मानवीय भूलों के कारण इसका अस्तित्व ही मिटता जा रहा है.
अभी भी बचाई जा सकती है गौरेया
इस प्रजाति को अभी भी बचाया जा सकता है. जहाँ पक्के घर हैं वहां लकड़ी के छोटे -छोटे घर बना कर छप्पर में स्थापित किये जा सकते हैं. क्या पता गौरेया आपके आंगन में फिर से चहचाह उठे.
            




		




























