हिमाचल प्रदेश में हर सक्रांति यानि हिन्दू कैलंडर के अनुसार महीने के पहले दिन को वैसे तो पूजा पाठ तो होता ही है लेकिन खासकर बरसात के मौसम में कई प्रमुख त्यौहार प्रदेश में मनाए जाते है. श्रावण मास की सक्रांति पर सुडाणु/चिडाणु, भाद्रपद की सक्रांति पर पतरोड़ू और आश्विन मास की सक्रांति पर सायर उत्सव बरसात के दिनों में मनाए जाने वाले प्रमुख उत्सव हैं।
स्थानीय त्यौहार है “पतरोड़ू”
पतरोड़ू त्यौहार हिन्दू कैलंडर के भाद्रपद यानि भादों की सक्रांति को मनाया जाता है। लोग सुबह सवेरे नहा-धोकर पूजा-पाठ करते हैं और नसरावां और भोग लगाते हैं। नसरावां दरअसल नवग्रह शांति के लिए कच्चे अनाज का भोग लगाए जाने को कहते हैं। भोग पके हुए भोजन का लगाया जाता है।
इसके बाद दोपहर और शाम में कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं जिनमें पटरोडु व्यंजन अनिवार्य व्यंजन होता है। अन्य व्यंजनों में हलवा, सिरा, भरवा और प्लेन कचौरी, भल्ले, सूखी और रसदार सब्जियाँ, देशी मशरूम यानि छाछ की सब्जी, रायता आदि शामिल होती हैं।
हिमाचली डिश है पतरोड़ू
प्राचीन समय में जब लोग अपने कामों में व्यस्त रहते थे लेकिन इन त्यौहारों का भरपूर आनंद उठाते थे. इन त्यौहारों के बहाने से वे अपनी सेहत का भी ख्याल रखते थे. अपने रिश्ते नातेदारों के पास इन ख़ास दिनों में जरूर जाते थे। उन्हीं त्यौहारों में एक है पतरोड़ू का त्यौहार यानि अरबी के पत्तों से बनाई जाने वाली हिमाचली डिश.
यह है पतरोड़ू बनाने का तरीका
पतरोड़ू बनाने के लिए अरबी के साफ और बिना कटे-फटे पत्ते लें। इन्हें धो कर पानी को निठार दें। फिर इन्हें फैला कर रख दें ताकि बचा-खुचा पानी भी सूख जाये। वैसे अरबी के पत्तों पर पानी नहीं टिकता।
मसाले की सामग्री:
- बेसन या मक्की का आटा
- हल्दी पाउडर या कच्ची हल्दी पिसी हुई
- लहसुन, हरी मिर्च, अदरक और धनिये का पेस्ट
- सुंगधित वन तुलसी (यदि मिले तो)
- प्याज का पेस्ट
- हल्दी
- नमक
- लाल मिर्च पाउडर (ऐच्छिक)
- धनिया पाउडर (ऐच्छिक)
- अमचूर (ऐच्छिक)
सारे मसालों को स्वादानुसार मात्रा में मिला कर पेस्ट बना लें। मिलाने के लिए पानी या रिफाइंड तेल का उपयोग कर सकते हैं। फिर समतल सतह पर अरबी के पत्तों को फैला कर पेस्ट का लेप करें। लेप करने के बाद पत्तों को लपेट कर रोल बना लें। (नीचे देखें विडियो)
इन रोल्स को पकाने के दो तरीके हैं। पहला भाप के द्वारा और दूसरा कड़ाही में पकाना। भाप के द्वारा पकाने के लिए स्टीम कुकिंग बर्तन या बैम्बू स्टीमर का उपयोग कर सकते हैं.
जब इस तरह के बर्तन नहीं होते थे तो लोग एक खुले बर्तन में लकड़ियाँ और हल्दी के पत्ते बिछा कर स्टीम कुकिंग करते थे। देहात में आज भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है।
एक बार धीमी आंच में पक जाने के बाद अरबी के पत्तों के रोल्स खाने योग्य हो जाते हैं। इन्हें दूध या देशी घी मिला कर खाया जा सकता है।
वैसे अधिकतर लोग इन्हें तेल में तल कर खाना पसंद करते हैं क्योंकि तलने से इनका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। इन्हें तवे पर हल्का फ्राई या कड़ाही में पूरा फ्राई किया जा सकता है।
वैसे तवे पर इन रोल्स को करारा तल कर खाना अपने-2 में अभूतपूर्व है। इन्हें छोटे टुकड़ों में काट कर तलना बेहतर रहता है।
देसी घी या मक्खन के साथ
भाप के द्वारा द्वारा पकाने से पतरोड़े स्वादिष्ट तो होते हैं इसके साथ ही उनकी तासीर ठंडी हो जाती है. दूसरी विधि है पत्तों को कढ़ाही में तेल में पकाने की.
पकाने के बाद उसके छोटे -छोटे टुकड़े कर लिए जाते हैं फिर उन्हें देसी घी या मक्खन के साथ खाने का आनंद लिया जा सकता है. पतरोडू को देसी घी और दूध के साथ बड़े ही मजे से खाया जा सकता है.
स्थानीय उत्सवों से हो रहा मोह भंग
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और आधुनिकता की अंधी दौड़ में स्थानीय उत्सव अपना स्थान और महत्व खोते जा रहे हैं। गौरतलब है कि ये उत्सव हमारी संस्कृति और भाईचारे को आज तक जिन्दा रखे हुए हैं.
आज के समय में लोग केवल फ़ास्ट फ़ूड तक ही सीमित रह गये हैं तथा इन उत्सवों को भूलते जा रहे हैं. आज की युवा पीढ़ी में से कम लोगों को ही पता हो कि आज पतरोड़ू नाम का एक स्थानीय त्यौहार मनाया जा रहा है.
हमें इन प्राचीन त्यौहारों के लिए थोड़ा समय निकालना चाहिए ताकि हमारी संस्कृति और भाईचारा जिन्दा रह सके.