बैजनाथ के पास तेजोलिंग रूप में विराजमान हैं श्री महाकाल

देवभूमि हिमाचल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका इतिहास द्वापर, त्रेता या किसी अन्य युग से जुड़ा हुआ है. एक ऐसा ही मंदिर जो  बैजनाथ से करीब पांच किमी. की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर महाकाल मंदिर के नाम से जाना जाता है. महाकाल मंदिर के दर्शन करने व पूजा-अर्चना के लिए वर्ष भर श्रद्धालु आते रहते हैं. स्थानीय लोग अपने घरों में विवाह-शादी या अन्य कोई भी शुभ कार्य करने से पहले या बाद में बैजनाथ शिव मंदिर और महाकाल मंदिर में माथा टेकना कभी नहीं भूलते.

मेलों में होती है खूब भीड़

खासकर मेलों के दौरान तो इस मंदिर में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है. किवदंती के अनुसार भाद्रपद मास में शनि भगवान अपने गुरु श्री महाकाल के चरणों में वास करते हैं. यहां भाद्रपद मास के शनिवार को मेलों का आयोजन होता है. श्री महाकाल स्वयंभू लिंगों में से एक है. उज्जैन मध्यप्रदेश में यह ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजमान हैं.

श्री शनिदेव मंदिर

हिमाचल प्रदेश में श्री महाकाल तेजोलिंग रूप में है. महाकाल जी के साथ परिसर में भगवान शनिदेव की पूजा आदिकाल से होती रही है. लेकिन, वर्तमान में श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने के कारण भगवान शनि की शिला रूप और मूर्ति रूप में स्थापना कर दी गई है.

यहाँ हैं 4 पवित्र जल कुंड

श्री महाकाल मंदिर की परिक्रमा में चार पवित्र जल के कुंड हैं. जिनका जल प्राचीन काल में ऋषि लोग स्नान और महाकाल को अभिषेक करने के लिए इस्तेमाल करते थे. महाकाल मंदिर परिसर में से श्मशान भूमि को स्वामी रामानंद जी द्वारा बाहर स्थानांतरित कर दिया गया था. यहां पर लोग शनि शांति के लिए शनि पूजन और तेल से अभिषेक करते हैं.

पांडवों ने भी की थी पूजा

पुजारी बताते हैं कि ग्रहों के सताए हुए लोग यहां पर पूजा-अर्चना करते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि इस स्थान पर अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी पूजा की थी, जिसका साक्ष्य मंदिर के पास बने कुंती कुंड से मिलता हैं. यह भी कहा जाता है कि मंदिर बनवाने के बाद पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर महाकाल की आराधना की थी. इसे अघोरी साधकों और तंत्र विद्या का केंद्र भी माना जाता है. यहां पर शिव के साथ अपरोक्ष रूप से महाकाली का वास भी बताया जाता है.

सप्त कुंड

पहले ऐसी मान्यता थी कि यहां अगर कोई शव जलने न आए, तो घास का पुतला जलाया जाता था. मान्यता यह भी है कि सप्तर्षि जब इस क्षेत्र में प्रवास पर थे, तब सात कुंडों की स्थापना की गई थी. इनमें से चार कुंड ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड और सती कुंड आज भी मंदिर में मौजूद हैं.

तीन कुंड लक्ष्मी कुंड, कुंती कुंड और सूर्य कुंड मंदिर परिसर के बाहर बताए जाते हैं। कहा जाता है बह्म कुंड का पानी पीने के लिए, शिव कुंड के पानी से महाकाल का अभिषेक और इस पानी को नहाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है, जबकि सती कुंड के पानी को प्रयोग में नहीं लाया जाता है. कहा जाता है कि किसी दौरान में इस स्थान पर तीन रानियां सती हुई थीं.                                                                                              

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