सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व करवा चौथ 24 अक्तूबर, रविवार को पूरे देश में मनाया जा रहा है । इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, वैवाहिक जीवन और सुख-समृद्धि के लिए निर्जल रह कर करवा चौथ का व्रत रखती हैं। करवा चौथ व्रत इस साल विशेष योग में मनाया जा रहा है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, करवा चौथ पर चंद्रमा अपने प्रिय नक्षत्र रोहिणी में उदित होंगे। ऐसा संयोग करीब पांच साल बाद बन रहा है। व्रत करने वाली महिलाएं रात को चांद दर्शन और पूजा के बाद व्रत तोड़ती हैं। मान्यता है कि चंद्र दर्शन और चांद को अर्घ्य देने से पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले सुबह 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है. इस दिन सरगी का खास महत्व होता है. सुहागिन महिलाएं सास से मिली सरगी खाकर व्रत की शुरूआत करती हैं. इस दिन महिलाएं रात में चांद निकलने तक निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर देवी-देवताओं की स्थापना की जाती है.
चांद निकलने से पहले थाली में धूप, दीप, चंदन, रोली, सिंदूर, घी का दिया रखकर पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं करवा चौथ की व्रत कथा सुनती हैं. इसके बाद चांद निकलने पर महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, पूजा करती हैं और पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं.
वास्तव में करवा चौथ का व्रत-त्यौहार भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है. इस दिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं.
स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना श्रद्धा भाव होता है कि वे कई दिन पहले ही इस व्रत की तैयारियां शुरू कर देती हैं. इस दिन स्त्रियाँ खूब सजती संवरती हैं और भगवान से दिन भर के व्रत के बाद यह प्रण भी लेतीं हैं कि वे पति के प्रति मन, वचन, कर्म से पूर्ण तौर पर समपर्ण की भावना रखेंगी.
इस दिन शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है. इसके अलावा कुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए गौरी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है.
भारतीय स्त्रियों के लिए अखण्ड सुहाग देने वाला यह व्रत “करवा चौथ” अन्य सभी व्रतों से कठिन कहा जाता है क्योंकि इस दिन महिलाएं दिन भर निर्जल रह कर रात्रि को चंद्रमा उदय होने पर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं. इसी दिन दोपहर के बाद वे “करवा चौथ” की पौराणिक कथा सुनती हैं. कई पौराणिक कथाओं में करवा नाम की धोबन द्वारा भी यह व्रत पति की दीर्घायु की कामना से करने सम्बन्धी भी एक कथा मिलती है.
इस तरह करवा चौथ का व्रत पति की दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है. करवा चौथ का यह व्रत प्रथम रात्रि से ही मनाना प्रारम्भ हो जाता है. स्त्रियाँ सुबह -सुबह सूर्योदय से पहले व्रत का संकल्प लेती हैं और घरों में पूरा दिन स्वादिष्ट पकवान बनते हैं और महिलाएं श्रृंगार करती हैं.
शाम को कथा समाप्त होने के पश्चात चंद्रमा के उदय होते ही छननी में दिया रखकर चंद्रमा के दर्शन करती हैं और उन्हें चावल चढ़ाती हैं और फिर उसमें से अपने पति का मुख देखती हैं और उनकी आरती उतारती हैं तथा उन्हें माथे पर टीका लगाने के बाद उन्हें पैर छूकर प्रणाम करती हैं तथा उसके पश्चात पति अपनी पत्नी को पानी पिलाते हैं और उनका व्रत सम्पूर्ण करवाते हैं. इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति होती है.
करवा चौथ के दिन चांद निकलने का समय हर जगह पर अलग-अलग होता है। कुछ स्थानों पर चांद जल्दी निकल आता है, तो कहीं पर चंद्रदर्शन देर से होते हैं। करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 55 मिनट से शाम लगभग 9 बजे तक है।