क्या आपको याद है आपके आंगन में कितनी प्रकार के पक्षी बरसात के दिनों में अपनी आवाज से घर के वातावरण को संगीतमय बना देते थे. आज वो आंगन तो है लेकिन वो पक्षी समय के साथ -साथ न जाने कहाँ गुम हो गये. इन्हीं पक्षियों के साथ- साथ एक प्यारी सी चिड़िया ‘गौरैया’ (घरचिड़ी) भी आंगन की शोभा बढ़ाती थी लेकिन अब यह हर आंगन में नहीं चहकती . एक समय था जब सभी घरों में खासकर बरसात के मौसम में आंगन गौरैया से भरा रहता था. लेकिन आज ये विलुप्ति के कगार पर हैं. विलुप्ति के कारण चिंतनीय हैं.
हर आंगन में चहकती थी गौरैया
गौरैया एक बहुत प्यारी सी छोटी चिड़िया है. एक समय था जब खासकर बरसात के मौसम में यह हर घर के आँगन में चहकती देखी जा सकती थी. घर के बड़े-बुजुर्ग ‘आओ-आओ’ करके बुला कर अनाज आँगन में डालते थे और देखते ही देखते आँगन गौरैया से भर जाता है. गौरैया को पकड़ कर रंगा जाता था और लगभग हर आँगन में एक दो रंगी हुई गोरैया दिख जाती थी. आज यही गौरैया विलुप्ति के कगार पर खड़ी है.
मोबाइल टावर हैं खतरनाक
पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि गौरैया के लापता होने के कई कारण हैं जिनमें मोबाइल के टावर प्रमुख हैं। मोबाइल टावर 900 से 1800 मैगाहर्टज की आवृति उसर्जित करते हैं जिससे निकलने वाली विद्युत चुंबकीय विकीरण से गौरैया का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है इससे दिशा पहचानने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है आम तौर से 10 से 15 दिनों तक अण्डा सेने के बाद गौरैया के बच्चे निकल आते है लेकिन मोबाइल टावरों के पास 30 दिन सेने के बावजूद अण्डा नहीं फूटता।
पुराने घरों में रहना पसंद करती थी गौरैया
गौरैया आमतौर पर पुराने तरीके से बनाये गये घरों में घोंसला बनाती है. छतों में डाली जाने वाली बांस की बल्लियों के सुराख़ और घर के पिछवाडों में बनाये गये सुराख सर्वाधिक सुरक्षित और उपयोगी होते थे. आजकल क्योंकि इस तरह से बनाने वाले घरों की संख्या नगण्य है. पुराने घरों को तोड़ कर नए घर बनाये जाते हैं जिससे गौरैया को घर बनाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती. आधुनिक जीवन शैली तथा मकानों और भवनों के वास्तु में बदलाव के कारण गौरैया के घोंसले वाले स्थान समाप्त हो गये हैं। गौरैया हमारे साथ हमारे घरों में रहना पसंद करती है और स्वयं को सुरक्षित समझती है और उसकी यही प्रवृति उसके लिए घातक सिद्ध हुई है.
अपने घरों में बनाएं घौंसला
- अपने घरों में जहाँ तक हो सके गौरैया के निवास के लिए पर्याप्त सुराख रखें. घरों का निर्माण करते समय अपने मिस्त्री को इस सन्दर्भ में निर्देश दे. पहले से निर्मित घरों में संभव हो तो सुराख बनवा लें. अगर यह भी संभव न हो तो लकड़ी के बने बनाये घोंसले घर के आस पास या आँगन में स्थापित करवा ले. थोड़ी लकड़ी, कीलें और आरी हथोड़े की मदद से घोंसले खुद भी बनाये जा सकते हैं. सुराख या घोंसले मोबाइल टावर की विपरीत दिशा में या ऐसी जगह बनायें जहाँ मोबाइल सिग्नल कम से कम हो. घोंसलों को यथासंभव लकड़ी या पतली टिन/चादर से ढक दे ताकि मोबाइल तरंगों का कम से कम प्रभाव घोंसले पर पड़े.
ऐसे बच सकती है गोरैया
- घोंसले का मुंह ज्यादा खुला न होकर संकरा हो ताकि कौवे या मैना (घटैरी) आदि पक्षी गौरैया के अण्डों या बच्चों को नुक्सान न पहुंचा सके.
- पर्याप्त मात्र में चारा (बारीक अनाज) और पानी खुले में किसी बर्तन में रखें. अगर कभी गोरैया दिखे तो उसे बुला कर मुठी भर बारीक अनाज के दाने डालें. गोरैया यदि प्रस्ताव को स्वीकार करे तो नियमित तौर पर चारा दें. घर की छत यदि खुली हो तो पर्याप्त दाना और पानी का बर्तन छत पर रखें.
- ध्यान देने योग्य बात यह है कि मोबाइल तरंगे गोरैया के दिशा ज्ञान पर विपरीत प्रभाव डालती हैं और संभव हैं कि घोंसले से अधिक दूर चले जाने पर उसका वापिस लौटना मुमकिन न हो. खाने की खोज के अलावा गोरैया का घोंसले से ज्यादा दूर जाने का दूसरा कारण नहीं इसलिए यदि हो सके तो गौरैया को भी अपने घर के सदस्य की तरह महत्व देकर उसे भरपूर दाना और पानी दें ताकि उसे घोंसले से दूर जाने की जरुरत न पड़े.
- गोरैया को पकड़ने या रंगने की कोशिश न करें.