किसी ‘बहादुर’ शिकारी का कारनामा (नीचे चित्र में) जो छुप कर वार करता है और जंगल की शान समझे जाने वाले चीते तेन्दुए जैसे शानदार जानवरों को पैसे के लालच या महज़ शौक के लिए विलुप्त करने पर तुला है. क्या हम लोग इतने स्वार्थी हो गये हैं कि स्वजाति (तथाकथित इंसान) के अलावा किसी और प्राणी को धरती पर रहने नहीं देना चाहते?
तथाकथित इंसान लोग कुछ भी न करें क्योंकि ये आपका ‘कार्यक्षेत्र’ नहीं है और सोते रहें. जो जाग रहे हैं वो लोग ऐसे निर्दयी आखेटक और लालची लोगों पर कतई दया न दिखाएँ और सम्बंधित विभाग में शिकायत करें. शिकायत नहीं कर सकते तो उन्हें समझाएं. हो सकता है आने वाली पीढ़ी इन जानवरों को चिड़िया घरों में भी न देख सकें.
ध्यान देने योग्य बात ये है कि सम्बंधित विभाग के कुछ लोग और अधिकतर आम लोग आपकी बात को हंस कर टालने की मानसिकता रखेंगे, सो उनकी परवाह न करें और अपना कर्तव्य निभाएं.
महात्मा गांधी ने कहा था – “प्रकृति के पास मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सब कुछ है लेकिन मनुष्य के लालच को पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं है.”
आप प्रकृति से चीज़ें छीनते हैं या छीनते हुए चुपचाप देखतें हैं.. वही प्रकृति प्रतिशोध-स्वरुप एक दिन आपसे सब कुछ छीन लेती हैं. फिर लोग प्रकृति और ईश्वर को दोष देते हैं.