हिमाचल को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है तथा यहाँ के सभी मंदिर अपनी-अपनी विशेषता लिए हुए हैं.
ऐसा ही एक मंदिर मगरू महादेव मंदिर सुन्दर वादियों में स्थित है. यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर मंडी से 158 किलोमीटर दूर तथा करसोग से 45 किलोमीटर की दूरी पर छतरी नामक गांव में स्थित है. मन्दिर में दीवारों पर लकड़ी की नक्काशी , इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देती है.
छतरी गाँव में है स्थित
मगरू महादेव मंदिर कुल्लू जिला के आनी से मात्र आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जबकि मंडी से 158 किलोमीटर दूर है तथा करसोग से 45 किलोमीटर की दूरी पर छतरी नामक गांव में स्थित है.
लकड़ी की है सुंदर नक्काशी
मगरू महादेव का मंदिर प्राचीन काष्ट कला का एक अद्धभुत नमूना है. मन्दिर में दीवारों पर लकड़ी की नक्काशी , इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देती है. मगरू महादेव मंदिर सतलुज वर्गीय शैली में तीन मंजिलों में है, जो उत्तरी भारत के उत्कृष्ट मंदिरों में स्थान रखता है. बाहर से साधारण लगने वाला यह मंदिर अंदर से पूर्णतया नक्काशी से सजा पड़ा है.
चित्रकारी से किया है युगों का जिक्र
बहुत ही सुन्दर चित्रकारी के माध्यम से कई युगों का जिक्र किया गया है. 13वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर के भीतर शिव और पार्वती की पाषाण प्रतिमाएं दर्शनीय हैं. वर्ष भर यहां मेलों का आयोजन होता रहता है तथा दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं.
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खूबसूरत वादी में है मंदिर
यह मंदिर दो छोटी- छोटी नदियों के बीच छतरी नाम के स्थान पर स्थित है. यह एक खूबसूरत जगह पर, पहाड़ों से घिरा हुआ है. श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ मन्नत मांगने और पूजा करने आते है. मगरू महादेव किसी को भी निराश नहीं करते और सबकी झोली भर देतें है.
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यहाँ लगता है छतरी मेला
मंदिर में मेले लगते रहते है, छतरी मेला उन में से सबसे प्रसिद्ध है. यह मेला अगस्त महीने में दिनांक 15 से शुरू हो के 20 अगस्त तक चलता है. यह मेला देखने लोग दूर -दूर से आते है.
लोक गायक होते हैं मेले का मुख्य आकर्षण
मेले का मुख्य आकर्षण लोक गायक होते हैं जो मेले की शोभा को और बढ़ाते हैं. इस मेले के अलावा इस मंदिर में और भी मेले होते है.जैसे छतरी लबी, छतरी ठहिरषु आदि. मंदिर में हर महीने (साजा) में लोग आते है और अपने दुःख दर्द बताते है.हर साल मगरू महादेव सभी नजदीकी गांवों की यात्रा करते हैं.
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