हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा नाम की जगह से 30 किलोमीटर दूर काली धार पहाड़ी में ज्वालामुखी देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है. यह मंदिर समुन्द्र तल से 610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण काँगड़ा के राजा भूमि चंद ने करवाया था.
यहाँ गिरी थी सती की जीभ
ज्वालामुखी मंदिर को जोतां वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. इस मंदिर की गिनती माता के प्रमुख शक्तिपीठों में होती है. मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी.यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है.
यहाँ निकल रही हैं ज्वालाएं
यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.
जब अकबर को हुआ अहंकार
मान्यताओं के अनुसार, सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा. अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ.
अकबर ने की ज्वाला बुझाने की नाकाम कोशिशें
इसके बाद अकबर ने कई कोशिशें की लेकिन ज्वाला नहीं बुझी. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं. ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया। तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया.
अकबर का हुआ अहंकार चूर
यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अन्य धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.
गर्भ गृह से निकल रही ज्वाला
पृथ्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकला वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है. कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन किया जाता है.
चमत्कारिक है ज्वाला
लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकृतिक होने के साथ चमत्कारिक भी हैं क्योंकि अंग्रेजों ने भी अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ‘ऊर्जा’ का इस्तेमाल किया जाए. लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ऊर्जा को नहीं ढूंढ पाए. यह दोनों बाते यह सिद्ध करती हैं कि यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है, ना कि प्राकृतिक रूप से. आज भी भक्त दूर -दूर से यहाँ माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं. नवरात्रों में यहाँ मेलों का आयोजन किया जाता है.