चौहारघाटी के बड़ा देव हुरंग नारायण गुरुवार 17 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव 2022 के लिए रवाना हो जाएंगे। घाटी के बड़ादेव शिवरात्रि महोत्सव के लिए सबसे पहले चलने वाले देवता हैं। इस दौरान वह क्षेत्र में विभिन्न गांवों में लोगों के घरों में मेहमान बनेंगे, जबकि हस्तपुर चौहारघाटी वजीर देव पशाकोट 22 फरवरी को मंडी महाशिवरात्रि मेले में भाग लेने के लिए रवाना हो रहे हैं।
देवताओं के पहुंचने पर जगह-जगह पर ग्रामीणों द्वारा भव्य स्वागत किया जाएगा। इस दौरान देव दर्शन के लिए सैकड़ों की तादाद में लोगों की भीड़ भी होगी। देवता के भक्त इस दौरान मन्नतें पूरी होने पर अपनी भेंट अर्पित करेंगे। इस बार बड़ा देव हुरंग नारायण के साथ भी पहले से अधिक लगभग 250 देवलुओं के साथ मंडी आएंगे।
साथ ही देव पशाकोट के संग 200 के करीब देवलुओं के आने की संभावना है। मंडी जनपद में बड़ा देयो हुरंग नारायण में लोगों में विशेष आस्था है। देवताओं के देवलुओं का कहना है कि देवता के गांव में रुकने के कार्यक्रम पहले से निर्धारित कर रखे हैं और देव रथ को समय से पूर्व मंदिर से रवाना किया जाएगा है।
मंडी के शिवरात्रि पर्व में चौहारघाटी केे देवताओं में बड़ा देव हुरंग नारायण व हस्तपुर चौहारघाटी वजीर देव पशाकोट का विशेष स्थान है, वहीं दोनों देवता लोगों की मन्नौतियां पूरी करते हुए महाशिवरात्रि मेले के शुरू होन से एक दिन पहले ये सभी देवता मैगल के समीप एकत्रित होंगे और वहीं से सभी देवता मंडलू पूजन के दिन बड़ादेयो हुरंग नारायण की अगवाई में मंडी शिवरात्रि पर्व में भगवान माधोराव के दरबार में हाजिरी भरेंगे। इसी तरह से देव घडोणी नारायण भी अपने स्थान से 27 फरवरी को चलेंगे।
इस बार अपने नए रथ के साथ कथोग से पेखरा गहरी भी 200 देवलुओं के साथ 25 फरवरी को मंडी शिवरात्रि में आएंगे। आपको बता दें कि पेखरा गहरी का रथ पूरे सोने से निर्मित है। इसे बनाने के लिए भक्तों ने लाखों रुपए खर्च किए हैं। पेखरा गहरी ही चौहारघाटी के एक ऐसे देव हैं, जिन्हें बड़ा देव हुरंग नारायण के साथ-साथ चलने की इजाजत है।
कहा जाता है कि देव पेखरा गहरी और हुरंग नारायण बचपन के गहरे मित्र हैं। हुरंग देव जब भी मंडी शिवरात्रि में खेल लेते हैं तो सारा सामान देव पेखरा गहरी के पास ही संभाला जाता है। देवता को बड़ा देव के आगे पीछे चलने की कोई भी मनाही नहीं है। चौहारघाटी के हुरंग काहिका में भी जब तक पेखरा गहरी नहीं पहुंचते तब तक काहिका उत्सव शुरू नहीं किया जाता है। इसलिए हुरंग नारायण का देव पेखरा गहरी से गहरा मित्र संबंध हैं।