बदलते मौसम के कारण गेहूं की फसल पर मंडराने लगा खतरा

इन दिनोंं मौसम में उतार-चढ़ाव आने के कारण गेहूं की फसल को कई रोग लगने के खतरा मंडरा रहा है, जिसके चलते किसानों की चिंता बढ़ना शुरु हो गई है। अगर किसान इस समय थोड़ी-सी भी लापरवाही बरतता है, तो उसका प्रभाव गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है।

जगैहड़ा गाँव में गेहूं की फसल का नज़ारा

गेहूं में लगने वाला मुख्य रोगों में एक रोग है पीला रतुआ। ये काफी खतरनाक बीमारी है, इससे गेहूं को भारी नुकसान होता है।

गौरतलब है कि गेहूं किसानों की मुख्य फसलों में से एक है। बीते दो माह से किसान गेहूं का कार्य कर रहे है। फिलहाल किसानों की गेहूं की फसल खेतों में अच्छी लहरा रही है, लेकिन जनवरी में जैसे ही तापमान में उतार-चढ़ाव आता हैं, किसानों को फसल की चिंता होने लगती है।

गेहूं की फसल में कई रोग लग जाते हैं। कुछ रोग तो ऐसे होते हैं, जिसका प्रबंध करना काफी जरूरी होता है। इसको लेकर कृषि उप-निदेशक रामचंद्र चौधरी ने बताया कि पीला रतुआ बीमारी का पता पीले रंग से चलता है।

यह गेहूं के खेत में शुरुआत में एक दो स्थानों पर आती है। बाद में वह धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाती है। इस बीमारी में गेहूं के पौधे की पत्तियों पर पीला पाउडर लगा हुआ रहता है।

किसान रोग पर ऐसे करें नियंत्रण
अगर किसी किसान के खेत में आने वाले समय में पीला रतुआ का प्रकोप होता है तो उसके लिए समय रहते ही इसका प्रबंध कर लेना चाहिए।

इसके लिए प्रोपिकोनाजोल नाम की दवाई 200 एमएल 250 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिडक़ाव करना चाहिए या फिर मैकोजेब एम45 नामक दवाई 800 ग्राम दवाई एक एकड़ खेत में डाले।

अगर 10 दिन के अंदर इसका प्रकोप कम होता है तो ठीक है, वरना एक बार फिर से इन्हीं दवाइयों का इस्तेमाल कर खेत में डालें, ताकि उस पर पूरा नियंत्रण हो सके।

गेहूं को पीला रतुआ रोग की रोकथाम के संदर्भ में सभी विकास खंडों के कृषि विषयवाद विशेषज्ञों को भी अपने अपने क्षेत्र में फसलों का निरीक्षण करने के निर्देश दे दिए गए है, ताकि इस बीमारी का समय रहते पता लग सके व प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जा सके।
-डाक्टर रामचंद्र चौधरी, उपनिदेशक कृषि विभाग मंडी।

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