खजियार जैसा है कुल्लू का अनछुआ पर्यटक स्थल बागा सराहन

कुल्लू जिला का सबसे दूरवर्ती इलाका बागा सराहन एक ऐसा अनछुआ पर्यटक स्थल है, जिसे आज तक पर्यटन मानचित्र पर उभारा नहीं जा सका है।

खजियार की तरह दिखता है बागा सराहन का यह पर्यटक स्थल

मंगलवार को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ‘सरकार गांव के द्वार’ कार्यक्रम के तहत बागा सराहन पहुंचे, जहां की नैसर्गिक सुंदरता देखते ही बनती है।

हिमाचल प्रदेश में ऐसे कई अनछुए पर्यटक स्थल हैं, जहां पर अभी तक पर्यटक नहीं पहुंच पाए हैं। हिमाचल प्रदेश में भी ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो बागा सराहन को जानते हैं और यहां आ चुके हैं।

बागा सराहन के लिए रामपुर और निरमंड से होते हुए रास्ता निकलता है। जहां एक तरफ श्रीखंड यात्रा के लिए लोग जाते हैं, वहीं दूसरी ओर एक रास्ता बागा सराहन के लिए पहुंचता है।

बागा सराहन बेहद खूबसूरत और रमणीक स्थल है, जिसे यदि विकसित किया जाए, तो यहां बड़े पैमाने पर पर्यटन कारोबार बढ़ सकता है।

इस मार्ग के निर्माण के लिए यदि सरकार बजट दे, तो बागा सराहन तक पहुंचने में पर्यटकों को आसानी होगी और बड़े पैमाने पर यहां रोजगार के द्वार खुल खुल सकेंगे।

सीएम के प्रयास ला रहे रंग

बागा सराहन जैसे कई और भी इलाके प्रदेश के दूरवर्ती क्षेत्र में है, जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है। हरी-भरी वादियों के बीच एक बड़ा खुला मैदान चंबा के खजियार जैसा मनोरम है।

मुख्यमंत्री प्रदेश के अनछुए पर्यटक स्थलों को उभारने के प्रति गंभीरता रखते हैं, इसी वजह से उन्होंने बागा सराहन में आने का कार्यक्रम बनाया और काफी हद तक उनका यह प्रयास सफल भी रहा है।

बागा सराहन के लोग अपने बीच में सरकार को पाकर बेहद ज्यादा खुश हैं और उन्होंने सरकार के सम्मुख कई मांगे भी रखी हैं।

महाभारत से है बागा सराहन का संबंध

इस गांव का महत्त्व धार्मिक रूप से भी है, क्योंकि पौराणिकता के साथ इसका संबंध बताया जाता है। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बागा सराहन में कभी महाभारत काल में कौरव और पांडव भी आए थे।

पांडवों ने यहां सराहन का मैदान समतल किया था। पांडव यहां से कुछ दूरी पर एक अन्य स्थान पर भी ठहरे थे, जहां उन्होंने सरसों उगाई और बताया जाता है कि आज भी वहां इस तरह से सरसों खुद ब खुद उग जाती है।

धार्मिक महत्त्व वाले इस इलाके की सुंदरता बेहद ज्यादा है, जिसे विकसित करने पर यहां बड़ा पर्यटन क्षेत्र बन सकता है। बागा सराहन के इतिहास को लेकर स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां स्थित विशाल मैदान पांडवों ने एक ही रात में बनाया था और कौरवों ने इसी गांव के साथ लगते दिआउगी गांव में मैदान बनाया था।

लोगों ने बताया कि ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेज यहां से बशलेऊ पास होते हुए कुल्लू जाते थे। पौराणिक कथा के अनुसार जब बूढ़े सरौहनी यानी शाना ऋषि बंजार के देउरी क्षेत्र से यहां आए थे, तो उन्होंने यहां पर तपस्या कर रहे एक ड्रोपू देवता को बरछा मारकर भगाया था, जिसके बाद यहां मैदान के साथ बहती नदी सर्पिले आकार में बनी थी।

जनश्रुतियों के अनुसार एक बार पूरा सराहन गांव पहाड़ी के नीचे दब गया था, उस जगह का नाम डाक डावर है। पहाड़ी के नीचे दबने से केवल एक ही औरत जिंदा बच पाई थी, जिसने बाद में एक भाट से शादी की और उसकी पीढ़ी यहां भाटनु खानदान के रूप में आगे बढ़ी।

यहां अन्य सात खानदान भी हैं, जो उस औरत के ही वंशज माने जाते हैं। किसी समय शाना ऋषि कुल्लू दशहरा में जाते थे, लेकिन जब से भगवान रघुनाथ जी के रथ के दाएं ओर चलने के लिए बालू नाग और श्रृंगा ऋषि के देवलुओं के बीच विवाद और लड़ाई हुई थी, तब से ये देवता कुल्लू दशहरा में नहीं जाते हैं।

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