जोगिंद्रनगर — सैलानियों का कारवां गुजर जाता है और जोगिंद्रनगर उनके दीदार को तरसता है। जोगिन्दर नगर में ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जा सकते हैं, लेकिन सैलानियों के गुजरते वाहनों को गिनते रहना ही अब शायद जोगिंद्रनगर की नियति बन गया है। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम का प्राचीन होटल उहल भी जोगिंद्रनगर में है, लेकिन यह भी पर्यटकों के बढ़ते कारोबार को रोकने में नाकाम रहा है।
पर्यटकों के दर्शन इस होटल में पर्यटक सिर्फ रात गुजारने के लिए रुकते हैं। रात के समय भूले भटके पर्यटक भी इन होटलों में पनाह ले लेते हैं। जोगिंद्रनगर में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं मौजूद होने के बावजूद यहां के दर्शनीय स्थल पर्यटन विकास के लिए तरसते रहे हैं। दरअसल पर्यटन विकास की संभावनाओं को न तो तलाशा गया और न ही दर्शनीय स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया गया।
नतीजतन यहां की खूबसूरत वादियां गुमनामी के अंधेरे में खो कर रह गई हैं। पर्यटन विकास के लिए बेहतरीन यहां की वादियों पर प्रदेश सरकार मेहरबान हो जाए तो त्रिवेणी, जगतपुर, मगरू महादेव, भभौरी, कर्मपुर, मंगरैली,छपरोट, और मच्छयाल सहित दूरदराज के दर्जनों खूबसूरत स्थल पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जा सकते हैं। इन स्थानों में सौंदर्य का खजाना कुदरत ने खुले हाथों से लुटाया हैं।
हालांकि रोजाना हजारों देश-विदेश के पर्यटक जोगिंद्रनगर के मुख्य मार्ग से गुजर जाते हैं, लेकिन उन्हें आकर्षित करने के उपाए नहीं हो सके। लिहाजा हजारों पर्यटकों के काफिले गुजर गए, पर उन्हें रुकने की पृष्ठभूमि नहीं बनी। धर्मशाला और कुल्लू-मनाली के बीचोंबीच स्थित जोगिंद्रनगर की सड़कों को कुचलते हुए पर्यटकों के हजारों वाहन रोजाना गुजर जाते हैं, लेकिन उनके रुकने का आधारभूत ढांचा अभी तक तैयार नहीं हो सका।
[दिव्य हिमाचल के सौजन्य से ]