शानन-बरोट रोपवे बदहाली का शिकार

जोगिन्द्रनगर  : बरोट-शानन रोपवे आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। अंग्रेजों के समय में स्थापित इस रोप वे की सुध लेने वाला आज कोई नहीं है। आजादी से पहले अंग्रेजों के समय में शानन विद्युत परियोजना को ऊहल नदी से पानी लाने और बरोट बाजार की स्थापना करने में भी इस रोपवे का विशेष महत्व रहा है।

सन् 1932 में शानन जोगेंद्रनगर से बरोट तक चार रोप-वे स्टेशनों में पाच किलोमीटर लंबी रोपवे बनाई गई थी। इसका निर्माण उस समय कर्नल बैटी अंग्रेज द्वारा स्विटजरलैंड से मशीनरी पहुंचाकर करवाया गया था। उक्त रोप-वे बराट में पंजाब राज्य बिजली बोर्ड की 110 मेगावाट शानन परियोजना के लिए सामान ले जाने व आने जाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन यह व परियोजना कई वर्षो से इसके दो स्टेशन रोपवे मशीनें खराब होने पर बंद पड़ी है।

इस रोप वे पहला स्टेशन शानन से डेढ़ किलोमीटर 18 नंबर तक आता है। उसके बाद 18 नंबर से बैच कैंप तक दो किलोमीटर स्टेशन आठ हजार फुट की ऊंचाई तक पहुंचता है। वहा से अढ़ाई किलोमीटर पैदल ट्राबे लाइन होते हुए बरोट की तरफ हैंडगियर तीसरा स्टेशन साढ़े सात हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचता है, जबकि तीसरा स्टेशन हैंडगियर से कथयाड़ू तक आता है। कथयाडू से जीरो प्वाइंट तक उतराई में चौथा स्टेशन बरोट पहुंचाता है। इसके जरिये यहा के ऊंचाई वाले गाव के ग्रामीणों को आने जाने की बेहतर सुविधा मुहैया थी।

वहीं, परियोजना के सामान भी सरलता से बरोट पहुंचता था लेकिन पिछले करीब एक दशक से यह रोप वे बदहाल स्थिति में है जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बरोट पंचायत के प्रधान सुभाष ठाकुर, रमेश कुमार ठाकुर, भागमल, विजय कुमार, राम सिंह, कृष्ण, सीता राम, मनोज कुमार और भुपेंद्र सिंह आदि का कहना है कि अगर इस रोपवे को हिमाचल प्रदेश का पर्यटन विभाग अपने अधीन ले ले तो जहा सरकार को राजस्व लाभ मिलेगा। वहीं क्षेत्र में आने वाले सैलानियों को भी यहा के सामरिक और पर्यटन स्थलों को निहारने का आनंद आएगा।

क्षेत्र के पर्यटन को विकसित करना पहली प्राथमिकता है। शानन-बरोट रोपवे के जीर्णोद्धार को लेकर शीघ्र केंद्र में आवाज उठाई जाएगी। प्रदेश सरकार को भी इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।

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