कुल्लू: जिला कुल्लू प्राकृतिक सौंदर्य एवं देव संस्कृति के कारण विश्व मानचित्र में अपना स्थान बनाए हुए है. यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को भोगने के लिए सृष्टि के आरंभ से ही इसे गंधर्व, किन्नर, किरात, योगनियों, ऋषि-मुनियों व नाग एवं नारायणों ने वास स्थल बनाया है. इसी कारण वर्तमान का कुल्लू प्राचीन समय में कुलूत के नाम से प्रसिद्ध है. कुलूत अब भी प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं को अपने गर्भ में छिपाए हुए है.
ऐसा ही एक देव स्थल देवभूमि कुल्लू के दियार घाटी स्थित बशौणा नामक गांव में है जहां हजारों वर्ष पूर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार साक्षात कपिल मुनि की वास स्थली है. माना जाता है कि देवता कपिल मुनि जब तपस्या में बैठे थे तो उस समय राजा सागर के 60 हजार पुत्र आंख खोलते ही भस्म हो गए थे, क्योंकि राजा सागर के पुत्रों ने समस्त विश्व में आतंक मचा रखा था.
कहते हैं कि भगवान नारद ने सागर पुत्रों को मारने की योजना बनाई. योजना के तहत भगवान नारद ने उनका घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम के साथ बांध दिया था. जब सागर पुत्रों को घोड़े के खो जाने का समाचार मिला तो वे उसे खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम के पास पहुंचे. कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को बांधे हुए देख सागर पुत्रों के क्रोध का ठिकाना न रहा और उन्होंने भगवान कपिल मुनि को युद्ध के लिए ललकारा, जैसे ही तपस्या में बैठे भगवान कपिल मुनि ने आंखें खोली तो सागर पुत्र भस्म हो गए। इसके बाद राजा सागर ने अपने पुत्रों के उद्धार के लिए घोर तपस्या की लेकिन सफल नहीं हुए. अंत में भागीरथ कठोर तपस्या करने के बाद गंगा माता को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए.
जनश्रुति के अनुसार भगवान कपिल मुनि गंगा सागर से उत्तराखंड होते हुए देव भूमि कुल्लू के बशौणा नामक स्थान पर तपस्या में लीन रहे. जहां वर्तमान में कपिल मुनि की मूर्ति व पिंडी विद्यमान है. मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर प्राचीन बावड़ी है जहां 20 भादों की तिथि को स्नान करने से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है.
बैसाख संक्रांति के दिन देवता का रथ निकलता है, उस दिन गूर के माध्यम से देवता पूछ देता है. मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति पर भूत-प्रेत का साया हो तो देवता की शक्ति से दुष्ट शक्ति का खात्मा होता है. यही नहीं यदि किसी के घर पर बुरी नजर लगी हो तो यज्ञशाला से हवन की राख को लगाने से बुरी नजर से छुटकारा मिलता है.
देवता कपिल मुनि बशौणा के भंडारी अमर ठाकुर ने बताया कि इस मंदिर में हर रोज सुबह शाम पूजा-अर्चना होती है. हर तीसरे साल देवता के सम्मान में काहिका उत्सव होता है. यहां आज भी पत्थर की प्राचीन एवं चमत्कारिक मूर्तियां मौजूद हैं. इनमें अनेक रहस्य छिपे हुए हैं.