जोगिन्दरनगर : किसी भी शादी ब्याह या उत्सव को बिना वाद्य यंत्रों के अधूरा माना जाता है. वाद्य यंत्र किसी भी समारोह में अपनी अलग ही छाप छोड़ते हैं लेकिन अब ये वाद्य यंत्र बहुत ही कम देखने को मिलते हैं. वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, नगाड़े, तबला और शहनाई से वातावरण मधुर तो बनता ही है वहीं यह लोगों के आकर्षण का केंद्र भी होते हैं.ऐसा ही मंडी जिले का एक खूबसूरत पहाड़ी नृत्य है “लोहासरी” जो कभी लोगों के मनोरंजन का साधन हुआ करता था.
क्या है लोहासरी ?
लोहासरी जिला मंडी का मशहूर नृत्य है जो किसी भी बारात या उत्सव की रौनक होता था. लोहासरी में दो लोग नाटकीय अंदाज में नृत्य करते हैं तथा इस नृत्य में लाठी, टोकरा, झाड़ू यानि जो भी चीज हाथ लगती थी उसका प्रयोग करते थे. लोग लोहासरी का खूब आनन्द उठाते थे.
औरतें भी लेती थी हिस्सा
पुराने समय में लोहासरी लोगों के मनोरंजन का साधन होती थी. मर्दों के साथ साथ औरतें भी लोहासरी का बेहतर प्रदर्शन करती थी. क्योंकि उस समय टेलीविजन आदि साधन बहुत ही कम थे तो लोग इस तरह के नाटकों का खूब आनंद लेते थे.
अब नहीं दिखती लोहासरी
समय के साथ सात अब लोहासरी का महत्व भी कम होने लगा है. लोगों के पास टेलीविजन और मोबाईल के साधन आने से अब कहीं कहीं दिखती है लोहासरी. आज भी कई गाँव ऐसे हैं जहाँ इस नृत्य को जिन्दा रखा गया है तथा लोग आज भी इस लोहासरी का आनन्द उठाते हैं.