केलांग: लाहौल का स्विट्ज़रलैंड के नाम से मशहूर मयाड़ घाटी में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद है. लेकिन राज्य सरकार का पर्यटन की लिहाज से इसे अनछुआ तथा अनछेड़ा क्षेत्र को विकसित करने की तरफ अभी तक ध्यान ही नहीं गया है. इस घाटी की खूबसूरत छटा, सैलानियों, घुमक्कड़ों, पर्वतरोही व प्रकृति प्रेमियों को बार-बार यहां आने की ललक पैदा करती है. उपमंडल मुख्यालय उदयपुर से उत्तर की ओर 32 किलोमीटर के विस्तृत भू भाग पर बसी है.
जानकारी के मुताबिक उदयपुर से प्रस्थान करते ही सबसे पहले साक्षात्कार होता है. शैल शिखरों से खिसकते हिमखंड़ बम विस्फोट की भांति घुमक्कड़ों के दिल को दहला देता है. 7 किलोमीटर की इस यात्रा करने के बाद आता है मयाड़ घाटी का पहला गांव शकोली. यहां से शुरू हो जाते हैं बर्फ से ढके पर्वत श्रृखलाएं तथा लंबे दयार, देवदार, चीड़ के वृक्ष. मयाड़ घाटी के लोकगीतों एवं संगीत में जो सरसत, माधुर्य, मादकता, मस्ती एवं आर्कषण है वह अन्य में नहीं है. जो कि जनमानस के रोम-रोम को प्रफुल्लित करता है.
लोक वाद्य यंत्रों की धुनों पर थिरकती संगीत की लहरियों से तारतम्य पैदा करने वाली जनजातीय महिलाएं इतनी स्वभाविकता से और निसंकोच होकर नाचती है कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाता है. हर चढ़ाई या मोड़ पर यह जिज्ञासा होती है कि आगे कैसा परिवेश है और कुदरत का कैसा करिशमा है. कुदरती, पुष्प उद्यान, आगुंतकों के इस धरती पर पैर पड़ते हैं. रंग बिरंगी तितलियां उड़ना, नाचना शुरू कर देती है. इस पर्यटन स्थल के अंतिम छोर में पवित्र पाडुंसरी नामक तलाब भी है. यहां पर लामा गुफा भी विद्यमान है.
स्रोत : पंजाब केसरी