जिला मंडी की घोघरधार की पहाड़ी पर आज भादों डंगवास पर देर रात देवताओं और डायनों के बीच छिड़ने वाले महासंग्राम पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं.

घोघरधार के रण में देवताओं की नहीं बल्कि डायनों की बड़ी जीत के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं. तर्क दिया जा रहा है कि वैश्विक महामारी के इस मुशिकल दौर से उबरने के लिए डायनों की जीत बेहद जरूरी है.
देव समाज का विश्वास है कि डंगवास चौदस से लेकर पत्थर चौथ तक घोघर धार में अदृश्य और अलौकिक भीषण संग्राम होता है तथा डायनों के जीतने पर बीमारी महामारी पर रोक लगेगी,फसलें अच्छी होंगी और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी काफी हद तक टल जाएगा.
ऐसे में डायनों को ही घोघरधार में सब जीतते हुए देखना चाहते हैं.
डंगवांस पर शाम ढलते ही नकारात्मक उर्जा का प्रभाव देखने को मिलता है। कई लोगों पर नकारात्मक शक्तियों का साया पड़ने से उन्हें डुंगास लगना कहा जाता है।
पहाड़ के कुछ क्षेत्रों में तो आज के आधुनिक युग में भी आज की शाम बच्चों को घर से बाहर नहीं भेजा जाता है।
वहीँ परिवार के सदस्यों को शाम के समय घर से बाहर जाना हो तो नकारात्मक उर्जा से सुरक्षा कवच को अभिमंत्रित सरसों के दाने पास में रखने का रिवाज है।
कई जगह दरवाजों में भेखले की लकड़ी की कंटीली झाड़ियाँ लगाई जाने का रिवाज है।
आज छोटी काशी के पुरानी मंडी में अधिष्ठात्री देवी महाकाली और देवी चतुर्भुजा के दरबार में जाग का आयोजन होगा. देर रात अधिष्ठात्री देवी महाकाली और देवी चतुर्भुजा अपने भंडार से बाहर निकलते हुए हारियान क्षेत्र की परिक्रमा करेंगी.
मशालों और ढोल नगारों की सुरमुध स्वरलहरियों के बीच गूर देवी देवताओं का आह्वान करेंगे. देर रात घोघरधार में होने वाली जंग का विस्तार से विवरण कह सुनायेंगे.
जनपद के कई देवालयों में डंगवास पर जाग हो रही है. पत्र चौथ पर छोटी काशी के समीप देवधार में अधिष्ठाता देव बालाकामेश्वर के दरबार में जाग का आयोजन होगा.यह जाग जनपद की अंतिम जाग होगी.
घोघरधार ए चल रहे युद्ध का परिणाम पत्थर चौथ पर देवधार में होने वाली जाग में सुनाया जाएगा.
घोघरधार- जहां पर देवताओं और डायनों के बीच हर साल होता है युद्ध