हिमाचल की राजनीति में तीसरा विकल्प थे पंडित सुखराम

शिमला : कांग्रेस की सियासत के लिए आज का दिन बरगद के गिरने जैसा है। दिल्ली से मंडी तक राजनीतिक चौसर पर अपने मनमाफिक पासे फेंकते आए पंडित सुखराम अब जा चुके हैं। संचार मंत्री के तौर पर उनके फैसलों से ज्यादातर लोग वाकिफ हैं। आज हम उनके सियासी जीवन पर भी बात करेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री स्व : वीरभद्र सिंह के साथ

कभी कद और हद में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बराबर आ पहुंचे स्वर्गीय पंडित सुखराम का राजनीतिक सफर कई बार ऐसी जगह आ पहुंचा, जहां से उन्हें खत्म मान लिया गया, लेकिन वे वहीं से दोबारा उदय होने में सक्षम साबित हुए।

पहले प्रदेश और फिर मंडी की सियासत उनके केंद्र से कभी बाहर निकल ही नहीं पाई। कांग्रेस में स्वर्गीय पंडित सुखराम की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह से ज्यादा नहीं बनी। एक बार तो मंडी में स्वर्गीय पंडित सुखराम ने उनके घर में मिले पैसों को पार्टी फंड करार दिया था और इन पैसों को उनके घर में रखने का आरोप पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह पर लगाए थे।

कांग्रेस की राजनीति के यह दो किनारे कभी मिल ही नहीं पाए भले ही कांग्रेस दोनों को लेकर आगे बढ़ती रही। जीवन के आखिरी वक्त तक सियासी दांवपेंच का वे अच्छे से इस्तेमाल करते रहे।

हाल ही में कांग्रेस की हुंकार रैली में प्रदेश मामलों के प्रभारी राजीव शुक्ला ने उनसे हुई बात को मंच पर सार्वजनिक कर दिया था। इसमें उन्होंने कहा कि वे जब पंडित सुखराम से मिले तो उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा कांग्रेस की सरकार बनते हुए देखने की जाहिर की।

हिविकां ने इस चुनाव में चार सीटें जीती और पंडित सुखराम किंग मेकर बन गए। 65 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने 31 और भाजपा ने 29 सीटें जीती थीं। चुनाव के बाद भाजपा के एक विधायक का निधन होने से आंकड़ा 28 रह गया। हिविकां ने भाजपा को समर्थन का ऐलान कर दिया।

जबकि निर्दलीय विधायक रमेश धवाला भी भाजपा के खेमे में शामिल हो गए। ऐसे में भाजपा बहुमत का आंकड़ा हासिल कर पाई। हालांकि बाद में पंडित सुखराम ने हिविकां का कांग्रेस में विलय कर दिया था।

पंडित सुखराम की पार्थिव देह सड़क मार्ग से बुधवार देर शाम सात बजे तक मंडी पहुंचेगी। इसके बाद पार्थिव शरीर को गुरुवार को सुबह सेरी मंच पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा।

पंडित सुखराम का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ मंडी ब्यास किनारे स्थित हनुमानघाट पर होगा। उनके निधन के साथ ही मंडी जिला और पूरे प्रदेश के उनके समर्थक दुख के सागर में डूब चुके हैं।

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