लाहुल-स्पीति जिला को हिमस्खलन से सबसे अधिक खतरा

भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमस्खलन के बढ़ते खतरे को ध्यान में रखते हुए जोखिम आकलन की नई रूपरेखा तैयार की है। एक अध्ययन के जरिए यह भी पता लगाया गया है कि कौन से जिला हिमस्खलन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं और किस जिला में इससे निपटने की सबसे अधिक क्षमता है।

पश्चिमी हिमालय के 11 जिलों के एक नए अध्ययन से पता चला है कि हिमाचल प्रदेश के अधिकांश जिले हिमस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं, जहां पर उत्तराखंड के भी कुछ जिले शामिल है।

एक अध्ययन के अनुसार सडक़, बांध और सुरंगों के तेजी से हो रहे निर्माण और भारी वाहनों की नियमित आवाजाही और मानवीय गतिविधियां हिमस्खलन की घटनाओं में वृद्धि के मुख्य कारण होते जा रहे हैं। गौर रहे कि इस माह के शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में सीमा सडक़ संगठन के शिविर पर हिमस्खलन गिरा, जिसमें आठ मजदूरों की मौत हुई थी।

हिमस्खलन के बढ़ते जोखिमों को आकलन करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नई रुपरेखा विकसित की है। भारतीय विज्ञान शिक्षा एंव अनुसंधान संस्थान भोपाल के शोधकर्ता अक्षय सिंघल, एम काव्या और संजीव केझा ने संयुक्त हिमस्खलन संवेदनशीलता सूचकांक (सेबी) नामक एक तरीका विकसित किया है।

इसके अनुसार लाहुल स्पीति जिला सबसे अधिक खतरे (0.85) में है, जबकि रुद्रप्रयाग (0.3) में हिमस्खलन से निपटने की सबसे कम क्षमता है। अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक संजीव के झा की माने तो शोध आपदा प्रबंधन ,एजेंसियों, आपातकालीन सेवाओं, हिमस्खलन पूर्वानुमानकर्ताओं के लिए बहुत मददगार साबित होगा। -एचडीएम

हिमस्खलन से हर साल 40 मौतेंं

शोध में यह भी पाया गया है कि हर साल हिमस्खलन लगभग 30 से 40 लोगों की मौत का कारण बनते हैं और परिवहन मार्गों को बाधित करने से लेकर बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने तक कई तरह की समस्याएं खड़ी करते हैं। शोधकर्ताओं की माने तो सडक़, बांध और सुरंगों की तेजी से निर्माण और भारी वाहनों की आवाजाही से हिमस्खलन की संभावना बढ़ी है।

घाटी में मौसम परिवर्तन चिंता का विषय

जिला लाहुल-स्पीति के गोशाल गांव के रहने वाले सेवानिवृत्त वन अरण्यपाल बीएस राणा ने भी लाहुल-स्पीति में मौसम में हुए बदलाव और विकास से आज जो नुकसान हुआ है। उस चिंता जताई है। ग्लोबल वार्मिंग में जब से परिवर्तन हुआ है।

इसका नुकसान हिमालय को भी झेलनी पड़ रहा है। जिला लाहुल-स्पीति में भी बढ़ती वाहनों की आवाजाही से कहीं न कहीं फर्क जरूर पड़ा है, जिसके बारे में सोचने की जरूरत है। लाहुल में बर्फबारी न होना भी आज काफी बड़ी चुनौती बन चुकी है। जो बर्फबारी दिसंबर माह से जनवरी तक होनी चाहिए थी वह भी समय पर नहीं हो रही है।

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