देव हुरंग नारायण काहिका उत्सव 3 से 5 अगस्त तक

जोगिन्दर नगर।। चौहारघाटी के हुरंग गांव में पांच साल बाद मनाए जाने वाला देव समागम काहिका उत्सव 3 अगस्त यानि आज से शुरू हो रहा है। स्थानीय ग्रामीणों ने देव कारज की तमाम तैयारियां पूरी कर ली हैं। 3 अगस्त को देव हुरंग नारायण की बणी (वीरान जंगल) में मुरगण (देव कहानी) का आयोजन होगा।

देव हुरंग नारायण मंदिर से पुजारी के साथ सवार होकर बणी में प्रस्थान करेंगे। विश्राम के बाद अपनी भराड़ी में विराजमान होंगे। 3 अगस्त की रात्रि को देव हुरंग नारायण यहीं ठहराव करेंगे। इस दौरान देवता के नड़ देव हुरंग नारायण की प्राचीन कथा का वृत्तांत सुनाएंगे।

4 अगस्त को देव हुरंग नारायण के डांगु देव पेखरू गहरी सबसे पहले देव हुरंग नारायण के मंदिर में हाजिरी भरेंगे। स्थानीय ग्रामीण देव पेखरू गहरी की पूजा-अर्चना करने के बाद ही भोजन ग्रहण करेंगे। तदोपरांत आराध्य देव पशाकोट, इलाका हस्तपुर के कपलधार गहरी, सिल्हधार गहरी और इलाका अमरगढ़ के भगवान बलराम रूपी आराध्य देव घडोनी नारायण, द्रुण गहरी और त्रैलु गहरी का आगमन होगा।

इसके बाद छिद्रा प्रथा की शुरुआत होगी। 5 अगस्त को बड़ा काहिका मनाया जाएगा। इस दौरान देव मिलन के साथ-साथ देव नृत्य प्रमुख आकर्षण होंगे।

स्थानीय युवाओं ने स्वाड़ गांव में लकड़ी की पुली बनाकर लोगों को आने जाने की सुविधा मुहैया करवाई। इसके लिए स्वाड़, ग्रामण, फरेहड़ गांव के युवा मान सिंह पगलानी, तिलक राज और कालु राम ने लकड़ी का पैदल चलने योग्य पुल तैयार किया। उन्होंने बताया कि बीते दस दिन पहले विधायक जवाहर ठाकुर भी यहां पुल न होने की वजह से पानी लांघ हुरंग गांव पहुंचे थे।

क्या है काहिका उत्सव

पापों से मुक्ति के लिए काहिका उत्सव मनाया जाता है। बताते हैं कि मनुष्य की देह में देव हुरंग नारायण कई प्रकार के पाप से घिर गए थे। इसी लोक में पापों से मुक्ति को भगवान ने देव लोक से नरवेदी पंडित बुलाए थे, जिनके हाथों पापों से मुक्ति को अपना छिद्रा करवाया। काहिका उत्सव में नरवेदी पंडित जिन्हें देव हुरंग ने देवलोक से लाने के बाद जोगेंद्रनगर के हराबाग में पनाह दे रखी है। यही नरवेदी पंडित नड़ पांच वर्ष के उपरांत मनाए जाने वाले उत्सव में अहम भूमिका निभाते हुए देव हुरंग नारायण का छिद्रा करते हैं।

तीन दिन तक गड्ढे में दबाया जाता था नड़

किवंदती है कि वर्षो पूर्व चारवेद के नीचे मुरगन स्थान पर तीन दिन तक नड़ को ज़िंदा गड्ढे में दबाया जाता था और काहिका के अंतिम दिन उसे निकालकर देव शक्ति से फिर जिंदा किया जाता था। अब यह प्रथा मुरगन में तबदील हो चुकी है। देवता के साथ-साथ आम लोगों का छिद्रा करते समय नरवेदी पंडित के परिवार के सदस्य यानी नड़ जाती के लोग हाथों में लकड़ी के लिंग लेकर अश्लील भाषा का जमकर प्रयोग करते हैं। बताते हैं कि ऐसा करने से देव प्रसन्न होते हैं और नड़ परिवार पर भी उत्सव के दौरान कोई विपदा नहीं आती।

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