हिमाचल पर भी बिजली संकट का साया

पूरे देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्र ठप होने से बढ़े बिजली संकट की चपेट में हिमाचल भी आ सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पावर सरप्लस हिमाचल के पास वर्तमान में हाइड्रो सेक्टर में भी उत्पादन गिरा है। दूसरी ओर थर्मल प्लांट से आने वाले राज्य के शेयर की बिजली भी नहीं आ रही।

हालांकि लोड शेडिंग का तुरंत कोई खतरा नहीं है। ऊर्जा राज्य हिमाचल में वर्तमान में करीब 11000 मेगावाट बिजली का ही दोहन किया जा रहा है। इनमें से बोर्ड के पास 487 मेगावाट, पावर कारपोरेशन के पास 265 मेगावाट, केंद्रीय और संयुक्त क्षेत्र में सबसे ज्यादा 7500 मेगावाट, हिमऊर्जा के पास 315 मेगावाट, स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों के पास 2010 मेगावाट और राज्य के हिस्से के 160 मेगावाट के प्रोजेक्ट हैं। राज्य के पास इसी साल अगस्त और सितंबर में बरसात में नदियों में पानी होने के कारण अधिकतम प्रतिदिन 630 लाख यूनिट बिजली थी, लेकिन अब यह सिर्फ 396 लाख यूनिट है।

इसलिए उत्पादन पहले ही कम है, क्योंकि नदियों में पानी का स्तर गिर रहा है। आगे चूंकि सर्दियों का सीजन है, इसलिए उत्पादन अब कम ही होगा। स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर में नौ अक्तूबर को कुल 396 लाख यूनिट बिजली थी। इसमें बिजली बोर्ड की अपनी प्रोडक्शन, सेंट्रल शेयर और राज्य सरकार की इक्विटी के बदले निजी प्रोजेक्टों से आने वाली बिजली भी शामिल है। इनमें 27 लाख यूनिट बैंकिंग या अन्य माध्यमों से आई।

लेकिन इसी दिन राज्य की अपनी जरूरत 324 लाख यूनिट थी। इसमें से 318 लाख यूनिट बिजली राज्य ने शनिवार के दिन खर्च की। रविवार को हालांकि इससे थोड़ा कम बिजली की जरूरत रहेगी। इससे पता चलता है कि राज्य के पास सरप्लस पावर और अपनी जरूरत में ज्यादा अंतर नहीं बचा है। राज्य ने शनिवार को एक्सचेंज में करीब 64 लाख यूनिट बिजली बेची है। इसका रेट भी साढे़ तीन रुपए के करीब मिला है।

आने वाले दिनों में यदि ग्रिड में डिमांग बढ़ने से असंतुलन हुआ, तो ऐसा नहीं है कि हिमाचल इससे अछूता रहेगा। हालांकि स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर के अधिकारी कह रहे हैं कि अभी चिंता की बात नहीं है। हिमाचल अपनी जरूरत पूरी करता रहेगा।

जोगिन्दरनगर की लेटेस्ट न्यूज़ के लिए हमारे फेसबुक पेज को
करें।