भारतीय नारी के अखण्ड सुहाग का प्रतीक : करवा चौथ व्रत

जोगिन्दरनगर :करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर वर्ष देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार करवा चौथ का व्रत 17 अक्तूबर वीरवार के दिन मनाया जा रहा है. करवा चौथ को कर्क चतुर्थी भी कहते हैं. इस वर्ष करवा चौथ पर 70 वर्षों के बाद 4 अद्भुत संयोग पड़ रहे हैं. भारतीय नारी के लिए “करवा चौथ” का व्रत अखण्ड सुहाग को देने वाला माना गया है. भारतीय स्त्रियों के लिए अखण्ड सुहाग देने वाला यह व्रत “करवा चौथ” अन्य सभी व्रतों से कठिन कहा जाता है क्योंकि इस दिन महिलाएं दिन भर निर्जल रह कर रात्रि को चंद्रमा उदय होने पर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं.

करवा चौथ का शुभ मुहूर्त

पूजा मुहूर्त : शाम 5:50 बजे से 7:05 बजे तक

व्रत का समय : सुबह 6:23 बजे से रात्रि 8:16 बजे तक

चंद्रोदय का समय : रात्रि 8:15 बजे

पति की दीर्घायु का प्रतीक है व्रत

वास्तव में करवा चौथ का व्रत-त्यौहार भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है. इस दिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं.

कुँवारी कन्यायें भी करती हैं व्रत

इस दिन शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है. इसके अलावा कुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए गौरी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है.

दिन भर निर्जल रहती हैं स्त्रियाँ

भारतीय स्त्रियों के लिए अखण्ड सुहाग देने वाला यह व्रत “करवा चौथ” अन्य सभी व्रतों से कठिन कहा जाता है क्योंकि इस दिन महिलाएं दिन भर निर्जल रह कर रात्रि को चंद्रमा उदय होने पर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं. इसी दिन दोपहर के बाद वे “करवा चौथ” की पौराणिक कथा सुनती हैं. कई पौराणिक कथाओं में करवा नाम की धोबन द्वारा भी यह व्रत पति की दीर्घायु की कामना से करने सम्बन्धी भी एक कथा मिलती है.

सूर्योदय से पहले लिया जाता है संकल्प

इस तरह करवा चौथ का व्रत पति की दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है. करवा चौथ का यह व्रत प्रथम रात्रि से ही मनाना प्रारम्भ हो जाता है. स्त्रियाँ सुबह -सुबह सूर्योदय से पहले व्रत का संकल्प लेती हैं और घरों में पूरा दिन स्वादिष्ट पकवान बनते हैं और महिलाएं श्रृंगार करती हैं.

कथा के बाद होता है चाँद का दीदार

शाम को कथा समाप्त होने के पश्चात चंद्रमा के उदय होते ही छननी में दिया रखकर चंद्रमा के दर्शन करती हैं और उन्हें चावल चढ़ाती हैं और फिर उसमें से अपने पति का मुख देखती हैं और उनकी आरती उतारती हैं तथा उन्हें माथे पर टीका लगाने के बाद उन्हें पैर छूकर प्रणाम करती हैं तथा उसके पश्चात पति अपनी पत्नी को पानी पिलाते हैं और उनका व्रत सम्पूर्ण करवाते हैं. इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति होती है.

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