सौ नेत्रों से करुणा की वर्षा करने वाली माँ : सताक्षी यानि शाकुम्भरी

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में माँ शाकुम्भरी का सुंदर स्थान विराजमान है. सहारनपुर नगर से 25 कि.मी तथा हरियाणा प्रांत के यमुनानगर से लगभग 50 कि.मी. दूर यह पावन धाम स्थित है. शिवालिक पहाड़ियों के मध्य से बहती बरसाती नदी के बीच में मंदिर रूप में माँ का दरबार सजा हुआ है.माँ शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ में भक्तों की गहरी आस्था है तथा उनका विश्वास है कि माता उनकी हर प्रकार से रक्षा करती हैं तथा उनकी झोली सुख-संपत्ति से भर देती हैं. मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य प्रतिमा माता शाकुम्भरी देवी की है. माता की दाईं तरफ माता भीमा देवी व भ्रामरी देवी और बाईं तरफ माँ शताक्षी देवी विराजमान हैं.

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माँ शाकुम्भरी अपने भक्तों द्वारा याद करने पर अवश्य आती हैं. इस सम्बन्ध में एक प्राचीन कथा का उल्लेख आता है. एक समय में दुर्गम नाम का एक असुर था. उसने घोर तप द्वारा ब्रह्मदेव को प्रसन्न करके देवताओं पर विजय पाने का वरदान प्राप्त कर लिया. वर पाते ही उसने मनुष्यों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया. अंतत: वरदान के कारण उसने देवताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली. चारों वेद भी दुर्गम ने इंद्र देव से छीन लिए. वेदों के न होने पर चारों वर्ण कर्महीन हो गए. यज्ञ-होम इत्यादि समस्त कर्मकांड बंद होने से देवताओं का तेज जाता रहा, वे प्रभावहीन होकर जंगलों में जाकर छिप गए. प्रकृति के नियमों से छेड़ छाड़ होने पर सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई. सारी पृथ्वी पर भयंकर सूखा पड़ गया जिस कारण सारी वनस्पतियां सूख गईं. खेतों में फसलें नष्ट हो गईं.

ऐसी परिस्थितियों में देवता व मानव दोनों मिल कर मां अंबे की स्तुति करने लगे. बच्चों की पुकार सुन कर माँ न आए ऐसा भला कभी हो सकता है? भक्तों की करुण आवाज पर माँ भगवती तुरंत प्रकट हो गई. देवताओं व मानवों की दुर्दशा देख कर माँ के सौ नेत्रों से करुणा के आंसुओं की धाराएं फूट पड़ीं. सागरमयी आंखों से हजारों धाराओं के रूप में दया रूपी जल बहने के कारण शीघ्र ही सारी वनस्पतियां हरी-भरी हो गईं. पेड़ पौधे नए पत्तों व फूलों से भर गए. इसके तुरंत बाद माता ने अपनी माया से शाक, फल, सब्जियां व अन्य कई खाद्य पदार्थ उत्पन्न किये. जिन्हें खाकर देवताओं सहित सभी प्राणियों ने अपनी भूख-प्यास शांत की. समस्त प्रकृति में प्राणों का संचार होने लगा. पशु व पक्षी फिर से चहचहाने लगे. चारों तरफ शांति का प्रकाश फैल गया. इसके तुरंत बाद सभी मिलकर मां का गुणगान गाने लगे. चूंकि मां ने अपने शत अर्थात् सौ नेत्रों से करुणा की वर्षा की थी इसलिए उन्हें शताक्षी नाम से पुकारा गया. इसी प्रकार विभिन्न शाक आहार उत्पन्न करने के कारण भक्तों ने माता की शाकुम्भरी नाम से पूजा-अर्चना की.

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अब शेर पर सवार होकर मां युध्द भूमि का निरीक्षण करने लगीं. तभी मां को भूरादेव का शव दिखाई दिया. मां ने संजीवनी विद्या के प्रयोग से उसे जीवित कर दिया तथा उसकी वीरता व भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन हेतु आएंगे वे पहले भूरादेव के दर्शन करेंगे तभी उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी. आज भी मां के दरबार से आधा कि.मी. पहले भूरादेव का मंदिर है जहां पहले दर्शन किये जाते हैं.

इस प्रकार देवताओं को अभयदान देकर माँ शाकुम्भरी नाम से यहां स्थापित हो गई. माता के मंदिर में हर समय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है नवरात्रों व अष्टमी के अवसर पर यहां अत्यधिक भीड़ होती है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आसपास के कई प्रदेशों के निवासियों में माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है. परिवार के हर शुभ कार्य के समय यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. लोग धन धान्य व अन्य चढ़ावे लेकर यहां मनौतियां मांगने आते हैं. उनका अटूट विश्वास है कि माता उनके परिवार को भरपूर प्यार व खुशहाली प्रदान करेंगी. हर मास की अष्टमी व चौदस को बसों, ट्रकों व ट्रैक्टर टालियों में भर कर श्रद्धालु यहां आते हैं. स्थान-स्थान पर भोजन बनाकर माता के भंडारे लगाए जाते हैं.

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