रक्षाबंधन से जन्माष्टमी के दिन तक जाहपीर के मंडलीदार गूगा जाहपीर के साथ गाँव में घर-घर जाकर लोगों के सुखमयी जीवन की कामना करते हैं. गूगा जाहपीर गढ़मरू देश के राजा जयोर व रानी वाछ्ला के पुत्र थे.
गूगा जाहपीर को राजा छतरी जाहपीर के नाम से भी जाना जाता है . मंडलीदार गाँव में घर-घर जाकर राजा छतरी जाहपीर की गाथा का गुणगान करते हैं. रानी वाछल ने गुरू गोरख नाथ की पुत्र प्राप्ति के लिए 12 साल तक सेवा की थी. रानी वाछ्ला ने पुत्र प्राप्ति के लिए जीभ से चौका, बालों से झाड़ू, 12 साल तक सुहागिन होते हुए भी सफेद कपड़े पहन कर गुरू गोरख नाथ की सेवा की थी जिससे गुरू गोरख नाथ ने भगवान भोलेनाथ से फल माग कर रानी वाछ्ला को पुत्र बधाई दी थी.
गुरू गोरख नाथ ने रानी वाछ्ला को एक शक्तिशाली पुत्र होने का वरदान दिया था. रानी वाछ्ला ने 80 वर्ष की उम्र में गूगा जाहपीर को जन्म दिया था. राजा छतरी जाहपीर पर लोग बहुत बड़ी आस्था रखते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त करते है. सांप के काटने से गूगा जाहपीर के नाम का धागा बांधने मात्र से ही रक्षा हो जाती है.
जोगिन्दरनगर क्षेत्र के डिभणु गाँव के पास और कुराटी के सकमांद गाँव में गूगा के मंदिर हैं. मंडलीदार पूर्ण सिंह और धनी राम गाँव भचकैड़ा का कहना है कि लोग पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे है. पुरानी धरोहर को कायम रखने के लिए सरकार को पग उठाने चाहिए ताकि पुरानी धरोहर कायम रह सके. क्षेत्र में राजा छतरी जाहपीर की सेवा श्रद्धा विश्वास व पूरी लग्न के साथ आठ दिन तक मंडलीदारों द्वारा की जाती है.
मंडी जिला में आजकल घर-घर जाकर गूगा मंडली के सदस्यों द्वारा जाकर गूगा भगवान का गुणगान किया जा रहा है. गूगा मंडली के सदस्यों द्वारा नगें पांव हाथों में छत्र लेकर घर- घर घूम कर कथाएं सुनाई जा रही हैं.
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन से आगामी सात दिनों तक गूगा की कथाएं सुनने से सुख मिलता है और दुख व कष्ट दूर होते हैं. गूगा की इस कथा के गुणगान का यह क्रम जन्माष्टमी के अगले दिन नवमी को समाप्त होता है.