नववर्ष के आगमन के साथ ही शुरू होने वाले विभिन्न त्योहारों एवं लोक उत्सवों क़ी सूची में लोहड़ी के पर्व खास महत्व रखता है. मकर सक्रांति अथवा लोहड़ी के मूल को लेकर कई विचार हैं और यह मुख्यत: पंजाब के साथ जोड़ा जाता है. यह त्योहार सर्द ऋतु के अंत का सूचक है. हिमाचल प्रदेश, जम्मू, हरियाणा और दिल्ली के साथ साथ यह त्योहार बंगाली और उड़िया समुदायों के बीच बड़े हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है.
हिमाचल प्रदेश में विशेषत: जिला मंडी व काँगड़ा में लोहड़ी पर्व क़ी धूम रहती है । लोहड़ी में बच्चों और युवाओं क़ी टोलियाँ घर-घर जाकर गा-बजा कर लोहड़ी मांगते है। लोहड़ी पर लोग अपने-अपने घरों में खिचड़ी बनातें है जो देसी घी, मख्खन, दूध और दही के साथ परोसी जाती है. कई घरों में अलग-अलग अन्न की खिचडियां बनायीं जाती हैं.
जिला मंडी व काँगड़ा में लोहड़ी से पिछले दिन अर्थात सक्रांति से एक दिन पहले मसंत (देसी मासान्त) और लोहड़ी के दिन अथवा सक्रांति पर घरुंडु, चिरकिटी और ‘राह्जड़े’ गाने का प्रचलन था जो अब लगभग लुप्तप्राय है. घरुंडु में एक व्यक्ति पर चादर ओढ़ा कर उसे हिरन का रूप दिया जाता था और दो व्यक्ति चादर के दोनों छोरों से उसको पकड़ कर घर-घर ले जाकर नाचते हैं. भेंट स्वरुप खाद्य-सामग्री, अन्नाज और पैसे स्वीकार किये जाते हैं.
‘चिरकिटी’ में विशेष स्थानीय वाद्य-यंत्रो और कांसे की थाली के साथ लोक-गीत गाये जाते हैं जो अभी भी कभी कभार देखने सुनने को मिल जाते हैं. “पारले ग्रावां नी जाणा ओथी कोहड़ कुत्ती सुतिरी ग्वालू खदिरा अपणा..” मुख्या रूप से गाये जाने वाली ‘चिरकिटी’ है.
लोहड़ी पर्व पर संध्या के समय लोग घरों में अलाव जलाकर संयुक्त रूप से अग्निदेव को तिल,मूंगफली आदि क़ी आहुतियाँ डालते है और वर्ष भर सुख शांति के लिए प्राथना करते है.
पंजाब और हरियाणा की लोहड़ी के गीतों में आज भी सुंदर-मुंदरिये हो तेरा कौन बेचारा हो, पंज-पंज दस आगे मिली बस आदि लोहडिया आज भी लोगों क़ी पहली पसंद है ।