इक्की पहाड़ीए अपनी मेहनता कने खूब धन-दौलत कमाई. सै इक दिन मरी गया. तिसरे तिन पुतर थे. सभी रे सब आलसी. कई साल होई गए पर तिन्हे कोई कम कार नी कित्ता. आपणे बापू री कमाइया पर ही जीणा थे लगिरे.
कुछ साल बाद बडे पुत्र रे मठे रा ब्याह होया. नोयीं ब्याही नूंह समझदार थी.
इक दिन इक साधू बाबा तिन्हा रे घरा भिक्षा लैणा आया.
बाबा, “अलख”
नूंह, “एथी नी मिलणा कख”
बाबा, “खांदे क्या?”
नूंह, “पिछली कमाई”
बाबा, “अग्गे?” (मतलब जाहली जे पिछली कमाई मुकी जाणी ता)
नूंह, “अग्गे तुध साही”
अन्दर घरा सब लोक सुनणा लगिरे थे. तिन्हा री हाखीयाँ खुली गयी. तिन्हे कमाणा शुरू करी दिता.
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