श्राद्ध आज यानी 29 सितंबर से शुरू हो गए हैं, जो कि 14 अक्तूबर तक चलेंगे। इस अविध में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं तथा उनकी आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं।
ज्योतिष क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त जवाली के ज्योतिषी पं. विपन शर्मा ने बताया कि पितृ पक्ष में लोग यज्ञ करने के बाद अपने पितृ को जल और अन्न का भोग कौओं के जरिए कराते हैं।
माना जाता है कि इन कौओं में पितरों की आत्मा विराजमान होती है। हिंदू सनातन परंपरा में श्राद्धों के दौरान कौओं का काफी ज्यादा महत्व है।
कौआ यमराज का प्रतीक होता है। यमराज मृत्यु का देवता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कौआ अन्न खा ले तो यमराज खुश होते हैं और उनका संदेश उनके पूर्वजों तक पहुंच जाता है।
पंडित विपन शर्मा ने बताया कि श्राद्ध के दौरान तर्पण में एक थाली कौअे, कुत्ते और गाय के लिए भी निकाली जाती है। अगर कौअे नहीं मिल रहे हैं, तो किसी भी पक्षी को भोजन कराया जा सकता है, लेकिन कौअे को ही खिलाया जाए यही उत्तम होता हैं।
गरुड़ पुराण में लिखा है कि कौआ यमराज का संदेश वाहक है। श्राद्ध पक्ष में कौअे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यम ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा।
तब से यह प्रथा चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण को भोजन कराना होता है, उतना ही जरूरी कौवों को भोजन कराना भी होता है। माना जाता है कि कौवे इस समय में हमारे पितरों का रूप धारण करके हमारे पास रहते हैं।
यह है कथा
कथानुसार कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर भगवान श्रीराम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौवे की आंख फूट गई।
कौवे को जब इसका पछतावा हुआ, तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी, तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा।
भगवान राम के पास जो कौआ का रूप धारण करके पहुंचा था, वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।