रिवालसर : रिवालसर झील में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से मछलियों के मरने के सिलसिला शुरू हो गया है। शुक्रवार को हजारों मछलियां प्रदूषण की भेंट चढ़ गई।
सुबह जब लोग झील परिक्रमा के लिए निकले तोचारों ओर मरी हुई मछलियां मिली। मरी हुई मछलियां झील किनारों पर आकर अटक गई थी। कुछ स्वयंसेवी लड़कों ने झील में उतरकर मरी हुई मछलियों को बाहर निकाला। झील में भारी मात्रा में न्यूट्री, आटा व बिस्कुट मछलियों को खाने के लिए फेंकने तथा बारिश से पहाड़ी व नालियों का गंदा पानी झील में घुसने से मछलिया मरी हैं।
इस पर प्रशासन रोक लगाने की पूरी तरह नाकाम रहा है। लोगों का कहना है कि वीरवार को बाहर से आए पर्यटकों ने भारी मात्रा में न्यूट्री, बिस्कुट व आटा झील में फेंका, जिसके बाद मछलियों का मरना शुरू हो गया। जब तक झील में मछलियों को दाना डालना पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा तब तक मछलियों के मरने का सिलसिला बंद नहीं होगा। लोगों ने कहा कि झील में दाना डालने से रोकने के लिए नगर पंचायत को पुलिस का सहयोग व स्वयं चौकीदार की तैनाती करनी चाहिए। नगर पंचायत के मजदूर मछलियों को गड्ढे में दबा दिया है।
उधर, नगर पंचायत प्रधान बंशी लाल ठाकुर ने बताया कि 11 मई 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सीवरेज का शिलान्यास कर सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग को बजट का पैसा देकर इस कार्य को जल्दी करवाने की बात की थी लेकिन दो वर्ष से ज्यादा समय बीतने के बाद भी विभाग ने कोई कार्य नहीं किया। झील से गाद उठाने के लिए डीपीआर बन चुकी है, लेकिन वन विभाग अभी कार्य शुरू नहीं कर सका है। अगर सीवरेज व गाद उठाने का कार्य शुरू हो जाए तो रिवालसर झील में मछलियों का मरने का क्रम रूक जाएगा। मछलियों को दाना न डालने के लिए सख्त नियम बनाकर लागू किया जाएगा।
इधर, सहायक निदेशक मत्स्य मंडी महेश शर्मा का कहना है कि झील में बारिश का गंदा पानी घुसने से प्रदूषण की मात्रा बढ़ गई है। इससे मछलियां मरने लगी हैं।
स्रोत: जागरण