हिमाचल प्रदेश में ग्रीष्मकालीन स्कूलों में मानसून की छुट्टियों पर एक बार फिर किचकिच के आसार बनने लगे हैं। जून की आठ तारीख हो रही है, पर अभी तक शिक्षा विभाग मानसून अवकाश पर कोई फैसला नहीं ले पाया है।
बुद्धिजीवियों और बच्चों की सेहत के लिए चिंतित अभिभावकों ने मांग रख दी है कि अवकाश का शेड्यूल बदला जाए, जो छुट्टियां 22 जून से होनी हैं, उन्हें 15 जुलाई से दिया जाए।
सबसे ज्यादा बरसात जुलाई और अगस्त में ही होती है, जिसमें बच्चों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह मांग हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अध्यक्ष लोकेंद्र नेगी ने भी सरकार से की है।
ध्यान रहे कि बरसात में होने वाली स्कूलों की छुट्टियों को कुछ नासमझ अधिकारियों ने मध्य जून से शुरू कर दिया। बरसात की छुट्टियों को गर्मी के महीने में देने का कोई कारण समझ नहीं आया।
सैंकड़ों अभिभावकों ने सरकार से मांग भी रखी है कि जुलाई-अगस्त में होने वाली छुट्टियों को जून महीने में देने का कारण समझाएं, पर किसी ने नहीं सुनी।
अब होता क्या है…जून से जुलाई तक अवकाश और जब बरसात अगस्त माह में अपने पूरे योवन पर होती है, तो स्कूल रिओपन।
फिर अभिभावकों की सांसें सूखी रहती हैं कि उफान पर नदी-नाले, ज्यादा तक रास्ते बंद, बरसात ऐसी कि घर से बाहर निकलना मुश्किल, पर शिमला में बंद कमरों में बैठे अफसर और नेता अनजान।
जब अगस्त में स्कूल फिर शुरू होते हैं, तो हर तीसरे दिन जिलों के डीसी को अवकाश की घोषणा करनी पड़ती है। ऐसे में पढ़ाई की बर्बादी और संसाधनों का दुरुपयोग।
दशकों से चली आ रही परंपरा को बदलने का कारण क्या है। जब 15 जुलाई से 31 अगस्त का मानसून अवकाश होता आया, तो नई व्यवस्था क्यों? 15 जुलाई के आसपास ही बरसात अपना उग्र रूप धारण करने लगी है।
इसलिए स्कूलों में अवकाश उसी दौरान होना चाहिए।
स्कूलों में जल्द भरे जाएं प्रधानाचार्य के पद
प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ के अध्यक्ष लोकेंद्र नेगी ने कहा कि अनुबंध पर लगाए गए प्रवक्ता मार्च महीने में नियमित किए जाने थे।
आचार संहिता के कारण, जिन्हें नियमित नहीं किया गया, सरकार उन्हें अतिशीघ्र नियमित करें। प्रवक्ता संघ सरकार ने यह भी मांग की है कि जल्द प्रवक्ताओं की पदोन्नति की सूची जारी करके रिक्त प्रधानाचार्य के पदों को भरा जाए।