हिमाचल प्रदेश में भू-सुधारों के तहत लागू हुए लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में छूट देने की राज्य सरकार की पावर खत्म हो गई है। चाय बागानों को बेचने या लैंड यूज बदलने के मामले में अब हिमाचल सरकार का मंत्रिमंडल या मुख्यमंत्री भी यह मंजूरी नहीं दे पाएंगे।
इस एक्ट में यह बड़ा संशोधन भाजपा की जयराम सरकार कर गई थी। वर्ष 2021 में तत्कालीन राजस्व मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने इस एक्ट में चाय बागान की जमीन बेचने या लैंड यूज चेंज करने में धारा 6ए और 7ए के तहत राज्य सरकार को दिए गए अनुमति के क्लाज को हटा दिया था।
विधानसभा से विधेयक पारित करने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी को भेजा गया, क्योंकि यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 में प्रोटेक्टेड है। भारत के राष्ट्रपति ने 10 अप्रैल, 2023 को इस संशोधन को अनुमति दे दी।
उसके बाद राज्यपाल की अनुशंसा से विधि सचिव शरद कुमार लगवाल की ओर से इस संशोधन को नोटिफाई किया गया है। अधिसूचना के साथ ही राज्य सरकार की अनुमति देने की शक्तियां खत्म हो गई हैं।
लैंड सीलिंग एक्ट 1972 के तहत हिमाचल में एक व्यक्ति या परिवार के पास अधिकतम भूमि रखे जाने की सीमा तय है। यदि भूमि सिंचित और दो फसलों वाली है, तो सिर्फ 10 एकड़ जमीन ही रखी जा सकती है।
यदि एक फसल वाली जमीन है, तो 15 एकड़ जमीन एक व्यक्ति रख सकता है। इसके अलावा अन्य कैटेगरी में 30 एकड़ अधिकतम सीमा है। इस एक्ट के तहत कुछ छूट भी पहले से निर्धारित है।
हिमाचल में राज्य और केंद्र सरकार पर लैंड सीलिंग एक्ट नहीं लगता। कोऑपरेटिव सोसायटी के अलावा औद्योगिक इस्तेमाल और जलविद्युत परियोजनाओं की भूमि भी लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर हैं।
हिमाचल में इस एक्ट से धार्मिक संस्थाओं को भी छूट दी गई है। इस छूट का लाभ राधा स्वामी सत्संग ब्यास जैसी कुछ संस्थाएं भी उठा रही हैं।
लैंड ट्रांसफर एक्ट में भी बड़ा बदलाव
हिमाचल में ट्राइबल एरिया में लागू ट्रांसफर ऑफ लैंड रेगुलेशन एक्ट 1968 में भी बड़ा बदलाव हुआ है। इसमें तत्कालीन राज्य सरकार ने 2018 में एक संशोधन किया था।
इस संशोधन के अनुसार ट्राइबल एरिया में लोन लेने के लिए जमीन मोटिवेट करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति जरूरी होती थी।
अब सरकार की अनुमति के बिना लोग किसी भी बैंक से लोन ले सकेंगे, जिसका हैडक्वार्टर हिमाचल में ही स्थित हो।