जोगिन्दरनगर : क्या आपने दीवाली के अवसर पर कभी एहंकलू खाए हैं. कुछ समय पहले तक दीवाली के अवसर पर हर घर में बनते थे एहंकलू. लेकिन आज बड़ी मुश्किल से किसी घर में बनते हैं एहंकलू. आज समय के साथ इस परम्परागत डिश को लोग भूलते जा रहे हैं जिसे हमें संजोना होगा.
विलुप्ति के कगार पर एहंकलू
एहंकलू यानि दीवाली के अवसर पर खाई जाने वाली एक स्वादिष्ट डिश जो आज लगभग विलुप्ति के कगार पर है. यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज की चकाचौंध में हम फास्ट फ़ूड के चक्कर में अपने परम्परागत व्यंजनों को भूलते जा रहे हैं.
पत्थर के बड़े बर्तन पर बनते हैं एहंकलू
यह स्वादिष्ट डिश एक बड़े पत्थर में बनाई जाती है जिसे हम पत्थर का बर्तन भी कह सकते हैं इसका पुराना नाम कैहलावा हैं जिसमें मिस्त्री द्वारा तराश कर छोटी -छोटी खोरियां बनाई गई होती हैं. पत्थर के बर्तन के नीचे एक आधा घंटा पहले आग जलाई जाती है.
लोहे की छड़ या लकड़ी से पकाए जाते हैं एहंकलू
पत्थर गर्म होते ही चावल या गंदम का आटा घोलने के बाद पत्थर की छोटी छोटी खोरियों में डाला जाता है. फिर आटा जब गर्म होने लगे तो उसे लोहे या लकड़ी से पकाया जाता है. तो इस प्रकार से अब तैयार है एहंकलू डिश. एहंकलू को आप दूध और घी के साथ गर्म गर्म खाने का मजा ले सकते हैं.
यह मात्र प्रयास भर है
हमें इस प्रकार के परम्परागत व्यंजनों को संजोये रखना चाहिए तथा दीवाली के अवसर पर इस ख़ास प्रकार के व्यंजन का मजा लेना चाहिए. jogindernagar.com का यह मात्र अपने परम्परागत व्यंजनों को बचाने भर का प्रयास है.कृपया आप भी इसमें सहयोग दें.