निचले हिमाचल के कई हिस्सों में शिटाके मशरूम की पैदावार की जाएगी। औषधीय गुणों से भरपूर यह मशरूम न सिर्फ किसानों की आमदन बढ़ाएगी, बल्कि कई गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए भी इस्तेमाल होगी।
जायका प्रोजेक्ट के माध्यम से शिटाके मशरूम के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया गया है। जापानी तकनीक से हिमाचल में अब शिटाके मशरूम उगाया जाएगा। यह मशरूम न सिर्फ खाने में इस्तेमाल किया जाएगा, बल्कि कैंसर जैसी घातक बीमारी से लोगों को बचाने में भी रामबाण साबित होगा।
इस मशरूम को निचले हिमाचल में उगने का काम अलग-अलग जिलों में किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना जायका प्रोजेक्ट चरण- दो में इस मशरूम के उत्पादन को शामिल किया गया है।
जायका प्रोजेक्ट के परियोजना निदेशक सुनील चौहान ने बताया कि प्रोजेक्ट के पहले चरण में जापानी तकनीक से शिटाके मशरूम को प्रदेश में तैयार करने से संबंधित कार्य किया गया था और अब द्वितीय चरण में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में शिटाके मशरूम को निचले हिमाचली जलवायु में तैयार किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इससे अब निकले हिमाचल के किसानों को भी लाभ पहुंचेगा। गौरतलब है कि शिटाके मशरूम आज लोकप्रिय मशरूम के रूप में जाना जाता है, जिसका मूल स्थान पूर्वी एशियाई देश है।
इस मशरूम का उपयोग कई एशियाई देशों में खाद्य और औषधीयों के लिए किया जाता है। भारत में शिटाके मशरूम स्वदेशी तकनीक से विभिन्न केंद्रों द्वारा तैयार की जाती है।
हिमाचल में शिटाके मशरूम की खेती के लिए बीज खुंब अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट, सोलन से लिया जाता है। शिटाके मशरूम में पाए जाने वाल लॅटीनन (बायोएक्टिव कंपाउंड) को कई एंटी ट्यूमर और कैंसररोधी औषधियों में प्रयोग किया जाता है।
जायका के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुनील चौहान ने बताया कि हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना 2011 से चली हैं और दूसरे चरण की शुरूआत वर्ष 2021 में कर दी गई है।