हिमाचल प्रदेश के हिमालयन रीजन में ग्लेशियर पिघलने से बनी सैकड़ों झीलों में से चार झीलें अब पारछू की तरह खतरा बन रही हैं। पारछू झील के टूटने से सतलुज नदी में प्रलयकारी बाढ़ आ चुकी है।
ऐसा हादसा दोबारा न हो और यदि हो तो इसकी सूचना पहले मिल जाए, इसके लिए राज्य सरकार इन झीलों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने जा रही है। यह काम आपदा प्रबंधन के माध्यम से हो रहा है।
दो रोज पहले इस बारे में मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें आपदा प्रबंधन ने नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर हैदराबाद द्वारा इन झीलों पर सेटेलाइट से की गई स्टडी की रिपोर्ट भी रखी। इससे पहले उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी में 10 हेक्टेयर की झील से इतना बड़ा हादसा होने के बाद भारत सरकार भी इस मसले में गंभीर है।
इसमें सबसे ज्यादा चिंता इन चार झीलों में से चेनाब बेसिन की घेपंग गथ झील को लेकर जिसका आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। ये रोहतांग टनल से लाहुल की तरफ सिस्सू से पहाड़ पर 11 किलोमीटर पर है। इसी स्थान पर आजकल ज्यादा पर्यटक होते हैं।
सिस्सू हेलिपैड भी इसकी रेंज में है। इसी झील के ऊपर ग्लेशियर टूटने का प्वाइंट भी है, इसलिए खतरा बढ़ जाता है। आकलन है कि इस झील के टूटने पर 723 किमी रोड, 69 पुल और एक डैम के टूटने का खतरा है। इसलिए सबकी नजर इस पर है।
बाकी तीन झीलों में से एक ब्यास बेसिन और दो सतलुज बेसिन में हैं, लेकिन उनका आकार कम है। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने इन झीलों पर स्टडी के लिए जुलाई या अगस्त महीने में ग्राउंट टीमें भेजने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही इन झीलों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने के लिए भारत सरकार की एजेंसी सी डैक को कहा गया है। यह पहली बार होगा कि ग्राउंट टीमें यहां जाएंगी। इन टीमों में लोकल मैजिस्ट्रेट, आर्मी, बीआरओ, आईटीबीपी, सीडब्ल्यूसी, सीडैक, फारेस्ट और डीडीएमए के लोग भी साथ होंगे।
हिमालयन रीजन में सैकड़ों झीलें हैं। पारछु झील के कारण हुए हादसे के बाद केदारनाथ त्रासदी ने इस खतरे की ओर ध्यान खींचा है। हिमाचल में भी इसी आशंका पर चार झीलों की मानीटरिंग हो रही है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इन झीलों में अरली वार्निंग सिस्टम लगाने के लिए ग्राउंट टीमें भेजने का फैसला हुआ है।