अब गैर शिक्षण कार्य नहीं करेंगे टीजीटी : प्रारम्भिक शिक्षा विभाग

हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में पिछली बोर्ड कक्षाओं और परख के लिए करवाए गए मॉक टेस्ट में तीन विषय में छात्रों की परफार्मेंस बेहतर नहीं रही है। खासकर मैथ्स, साइंस और अंग्रेजी विषय में छात्रों का रिजल्ट असंतोषजनक रहा है। इस स्थिति को देखते हुए अब प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने सभी जिलों के डिप्टी डायरेक्टर और स्कूल मुखियाओं को नए निर्देश जारी किए हैं।

निर्देशों में कहा गया है कि स्कूलों में टीजीटी शिक्षक बच्चों की पढ़ाई पर सही ढंग से फोकस नहीं कर रहे। इस कारण इन तीन महत्त्वपूर्ण विषयों में बच्चे पिछड़ रहे हैं।

प्रारंभिक शिक्षा निदेशक आशीष कोहली की ओर से सभी जिलों को यह निर्देश जारी किए गए हैं कि जितने भी स्कूलों में टीजीटी मेडिकल, नॉन मेडिकल और आर्ट्स के शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्यों में भाग ले रहे हैं, उनसे वह ड्यूटी वापस ली जाएगी। इसमें खास तौर यह बताया गया है कि मिड-डे मील, स्कॉलरशिप जैसे कार्यों में टीजीटी शिक्षक अपनी सेवाएं नहीं देंगे।

इसके साथ ही किसी भी तरह की कल्चरल एक्टिविटी में भी यह शिक्षक यदि शामिल है, तो उनसे यह कार्यभार वापस लिया जाएगा। बच्चों की पढ़ाई पर टीजीटी शिक्षक पूरी तरह से फोकस कर सके, इसके लिए सभी तरह के गैर शिक्षण कार्य से उनकी ड्यूटियां हटाई जाएंगी, ताकि बच्चों की पढ़ाई पर वह शिक्षक पूरा फोकस कर सके।

इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि नॉन एकेडमिक एक्टिविटीज, जो की हाई स्कूलों और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में चल रही है, यदि उसके लिए जरूरी है, तो वह सारा काम मिनिस्ट्रियल स्टाफ लैब अटेंडेड और डीपीई सहित सी एंड वी शिक्षकों को भी दिया जाएगा।

सीएंडवी शिक्षकों ने किया अधिसूचना का विरोध

राजकीय भाषायी अध्यापक संघ के राज्य अध्यक्ष हेमराज ठाकुर, महासचिव अर्जुन सिंह सहितसमस्त शिक्षकों ने इस अधिसूचना का विरोध किया है।

संघ के राज्य अध्यक्ष हेमराज ठाकुर ने बताया कि इस अधिसूचना का विरोध राज्य के हर जिला से सभी सीएंडवी अध्यापकों ने उन्हें फोन करके जताया है और संगठन का नेता होने के नाते उन्हें इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाने का प्रस्ताव भी रखा।

यह एक विडंबना भरी अधिसूचना प्रारंभिक शिक्षा निदेशक ने जारी की है, जो किसी भी तरीके से न्यायसंगत और तर्कसंगत नहीं है। जब हिंदी और संस्कृत शिक्षक विभाग और सरकार से टीजीटी का वेतन और दर्जा मांगते हैं, तो विभाग तर्क देता है कि टीजीटी के पास स्कूलों में अतिरिक्त कार्यभार होते हैं।

गुणवत्ता शिक्षा में हिंदी भी एक विषय है, जिसमें कुछ स्कूलों में छात्रों को हिंदी भी पढऩी नहीं आती है। यह समानता के अधिकार की भी अवहेलना है और शिक्षक वर्ग का भी अपमान है। ऐसी बातों से शिक्षक आहत होता है और फिर मामले उच्च न्यायालय तक पहुंचते हैं।

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