पंजयाणु गांव के लोगों ने प्राकृतिक खेती अपनाकर कायम की मिसाल

मंडी : हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों की ओट में बिखरे पड़े खेत-खलिहानों में प्राकृतिक तौर पर उपजाई जा रही फसलें आज हर किसी को आकर्षित कर रही हैं। बिना किसी रसायन उर्वरक के उपयोग अथवा कीटनाशक के छिड़काव के बजाय पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से खेती कर किसान खुश हैं ।

मंडी जिला की पांगणा उप-तहसील के पंजयाणु गांव के लोगों ने प्राकृतिक खेती अपनाकर एक मिसाल कायम की है। इस गांव की लीना शर्मा ने खुद उदाहरण बनकर ग्रामीणों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया। लीना शर्मा को कृषि विभाग द्वारा आयोजित कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री सुभाष पालेकर के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने का मौका मिला।

इसके उपरांत लीना ने अपने खेतों में प्राकृतिक खेती प्रारंभ की और उनकी प्रेरणा से आज गांव के 30 परिवारों ने इसे अपना लिया है। गांव की एक और महिला सत्या देवी प्राकृतिक खेती की मास्टर ट्रेनर बन चुकी हैं।

गांव में पारंपरिक फसलों के अलावा मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बींस, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी व धनिया की खेती की जा रही है। आज प्रदेश के लगभग एक लाख 71 हजार किसानों द्वारा नौ हजार 421 हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक पद्धति से खेती की जा रही है।

वर्ष 2022-23 के लिए प्रदेश सरकार ने 50 हजार एकड़ भूमि को प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके अतिरिक्त 50 हजार किसानों को प्राकृतिक कृषक के रूप में प्रमाणित किया जाएगा।

गोशालाओं को पक्का करने व गोमूत्र एकत्र करने के लिए गोशाला बदलाव को 80 प्रतिशत उपदान दिया जा रहा है, जिसकी अधिकतम सीमा आठ हजार रुपए है। प्रत्येक गांव में प्राकृतिक खेती संसाधन भंडार खोलने के लिए दस हजार तक की सहायता का भी प्रावधान है।

100 प्राकृतिक गांव

प्रदेश की सभी 3615 पंचायतों में प्राकृतिक खेती मॉडल विकसित करने के साथ ही 100 गांवों को प्राकृतिक खेती गांवों के रूप में परिवर्तित करने की दिशा में काम किया जा रहा है।

दस मंडियों में प्राकृतिक खेती उत्पादों की बिक्री को स्थान निर्धारित करने के साथ ही दो नई मंडियां भी बनाई जाएंगी। इस योजना के अंतर्गत सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 17 करोड़ का बजट प्रावधान किया है।

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