मोबाइल के नशे से संस्कार विहीन हुई नई पीढ़ी : शांता कुमार

पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा कि प्रदेश में बढ़ते और भयंकर होते नशे के प्रकोप के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का सुझाव अत्यंत आवश्यक और विचारणीय है। नशे के साथ मोबाइल के नशे ने भी मिलकर इसे और भी भयंकर बनाया है।

समय रहते यदि समाज और सरकार ने उचित कार्रवाई नहीं की, तो भविष्य में पछताना पड़ेगा। दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह है कि नई पीढ़ी संस्कार विहीन हो गई है।

भारत में परिवार बच्चे को सबसे पहले संस्कार देता था, अब बच्चे के हाथ में मोबाइल के कारण माता-पिता के पास न तो बैठने का समय है और न ही उनसे कुछ सीखने की आवश्यकता है।

आज की पीढ़ी को परिवार से संस्कार नहीं मिलते और समाज में भयंकर नशे का प्रकोप है। चंबा में एक स्कूल के बाहर नशे में धुत पड़े मुख्याध्यापक का फोटो लाखों लोगों ने देखा।

हमीरपुर में एक छात्र की भी नशे के कारण मृत्यु हो गई। इन सब घटनाओं से भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने बताया नशे को कैंसर

हमारे सामने सबसे बड़ी गंभीर समस्या नशे की समस्या है। नशे का यह कैंसर जिस तीव्रता से समाज में फैल रहा है, उसे देखकर, सुनकर आदमी सीहर उठता है और लगता है जिस गति से नशा समाज को विनाश की गर्त में ले जा रहा है, उससे तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

प्रतिदिन नशे से होने वाली युवाओं की मौतों की खबरें और नशे की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने के समाचार डराते हैं। मानव समाज के अस्तित्व को खतरे में डालने वाला स्वयं मानव समाज ही है।

आदमी पैसे के लालच में अंधा होता जा रहा है । एक समय था, जब तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी और अधिक से अधिक शराब को नशा माना जाता था। आज अफीम, चरस, गांजा, कोकीन, चिट्टा और न जाने कौन-कौन से नए नामों के साथ नशा समाज में तबाही मचा रहा है।

इस धंधे में जो अंधाधुंध कमाई हो रही है, उसके लालच में लोग इस दलदल में फंसते हैं और जो फंस गए, वे फिर निकल नहीं पाते।

वैसे ही बेईमानी का धन कमाने में पुलिस प्रशासन और अन्य एजेंसियां, जिनको इस पर नियंत्रण करना है, वे भी रिश्वत के चक्कर में आंखें मूंद लेते हैं। इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि छोटे बच्चे, विद्यार्थी और युवा नशेड़ी बन जाते हैं।

परिवार नियोजन के कारण बहुत सारे परिवारों में एक ही बच्चा, लड़का या लड़की होती है और वह मासूम जब नशे की लत का शिकार हो जाते हैं, तो मां-बाप की जिंदगी वैसे ही नरक बन जाती है।

यदि युवा पीढ़ी नशेड़ी, होगी तो न सेना के लिए वीर सैनिक मिलेंगे, न पुलिस प्रशासन में स्वस्थ जागरूक कर्मचारी, अधिकारी मिल पाएंगे, न ही कृषि का क्षेत्र, न उद्योग का क्षेत्र और न ही सेवाओं का क्षेत्र बचेगा।

नशे का यह जहर सारे समाज को खोखला करके समाप्त कर देगा। ऐसे में प्रश्न उठता है कि करें क्या? इस संकट को दूर करने के लिए कोई बाहर से आकर समाधान नहीं निकालेगा, हमें स्वयं प्रत्येक नागरिक को अपना अपने परिवार के प्रति, समाज के प्रति और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाना है।

कुछ समय से मैं देख रहा हूँ कि परिवार की परिभाषा पति, पत्नि और बच्चों तक ही सीमित हो गई है। समाज के अन्य लोगों का सुख-दुख हमारा अपना नहीं होता।

इसी प्रकार से हमारा सुख-दुख समाज के लोगों का नहीं होता। इसी कारण से मनुष्य कष्ट या समस्या के समय सामाजिक प्राणी होते हुए भी अपने आप को अकेला पाता है।

कुछ समय पहले तक किसी का भी बच्चा अगर सिगरेट, बीड़ी या शराब आदि का नशा करते किसी को मिलता था, तो प्रत्येक व्यक्ति अपना सामाजिक दायित्व समझते हुए उसे रोकता था।

उसके परिवारजनों को सूचना देता था, तो एक प्रकार से कुरीतियों पर दुष्प्रभावों पर पारिवारिक नियंत्रण के साथ सामाजिक नियंत्रण भी होता था।

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