जोगिन्दरनगर : आपने धाम का मज़ा तो कई बार लिया होगा लेकिन क्या आपने कभी मंडयाली धाम का स्वाद चखा है ?? जी हाँ मंडयाली धाम का अपना ही मज़ा है. आपने बहुत से ढाबों के बारे में देखा और सुना होगा जो सुबह से लेकर शाम और कई तो रात-दिन खुले रहते हैं। मैन्यू कार्ड पर भी व्यंजनों की लंबी फेहरिस्त भी देखी होगी लेकिन पद्धर के नारला नामक स्थान में स्थित ढाबे में रोजाना केवल चार घंटे ही खाना परोसा जाता है. वह भी केवल दोपहर का.
हरदम तैयार रहती है धाम
जिला मंडी के तहत नारला में स्थित है फौजी ढाबा जहाँ मंडयाली धाम हरदम तैयार रहती है. पूरी मंडयाली धाम का स्वाद सभी आने जाने वालों को यहाँ अनायास ही खींच लाता है.
बुरांस की चटनी बढ़ाती है जायका
यहाँ मंडयाली धाम में सभी प्रकार की दालें, खट्टा और कढ़ी के साथ साथ बुरांस के फूलों की चटनी भी परोसी जाती है. लेकिन यहाँ अगर आप समय से पहुँच गये तो ठीक नहीं तो दोपहर के बाद खाना नहीं मिलता है क्योंकि यही इस ढाबे की विशेषता है.
हर कोई होता है आकर्षित
नारला स्थित यह ढाबा हर किसी आने जाने वाले मुसाफिर को अपनी ओर बरबस ही आकर्षित कर लेता है.पिछले 35 सालों से यह ढाबा चल रहा है. मंडी -पठानकोट नेशनल हाइवे पर मंडी से करीब 25 किलोमीटर और जोगिन्दरनगर से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
चाय-पकौड़े भी हैं मशहूर
नारला में और भी करीब आधा दर्जन ढाबे और होटल हैं. यहाँ चाय के साथ पकौड़े भी बड़े स्वाद मिलते हैं. और जब बुरांस की चटनी का जायका हो तो क्या कहना. लेकिन जो भी मुसाफिर यहाँ से गुजरता है वो मंडयाली धाम का स्वाद चखे बिना यहाँ से आगे नहीं गुजरता.
स्व. चरण सिंह ने शुरू किया था यह ढाबा
मंडी जिला की पद्धर तहसील के जुन्धर गाँव के निवासी स्व. चरण सिंह ने 80 के दशक में यह ढाबा शुरू किया था. करीब 18 साल भारतीय सेना में नौकरी करने के बाद सेवानिवृत्त होने के बाद समय व्यतीत करने और आय के साधन के रूप में नारला में सड़क किनारे एक छोटा से ढाबा शुरू किया था.
धीरे- धीरे मशहूर हुआ ढाबा
यात्रियों को मंडयाली धाम परोसने के मकसद से शुरू हुआ ढाबा धीरे-धीरे मशहूर होने लगा. इस मार्ग में पहले कम वाहन चलते थे तथा ढाबे में काम भी कम था लेकिन आज के समय में इस सड़क मार्ग से वाहनों की काफी आवाजाही है तथा हर समय यहाँ वाहन खड़े देखे जा सकते हैं.
बेटों ने कायम रखी है मंडयाली धाम की परम्परा
इनके स्वर्गवास के बाद इनके दो बेटे राजेंद्र कुमार व सुरेश कुमार मंडयाली धाम की इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है. राजेंद्र कुमार का कहना है कि सुबह साढे नौ बजे ढाबा खुल जाता है. इनके साथ 5 से 6 कर्मचारी काम करते हैं. अपने हाथों से कूट पीस कर मसाले तैयार किए जाते है. धाम में पारंपरिक व्यंजनों के साथ ही सीजनल सब्जी के पकवान बनाए जाते हैं.
तय सीमा में ही होता है तैयार भोजन
यहां रोजाना तय मात्रा में ही भोजन तैयार किया जाता है, जिसकी समाप्ति पर करीब तीन- साढ़े तीन बजे ढाबा बंद करने के बाद सभी अपने घरों और खेतों में काम काज के लिए निकल जाते हैं. इनका कहना है कि हमें यात्रियों को इस तरह का भोजन परोसने में सुकून और शांति मिलती है. कई लोग कहते है कि आप नाश्ता और डिनर भी परोसे लेकिन हमारी अंतर-आत्मा ऐसा करने से रोकती है. वह इस कार्य से संतुष्ट है और जब तक संभव हुआ इसी परंपरा को आगे भी कायम रखेंगे.
साभार : APPLENEWS.COM