कारगिल विजय दिवस : हिमाचल के 52 सैनिक हुए थे शहीद

देश की सरहद पर एक जवान के प्राणों की आहुति से बड़ा कोई बलिदान नहीं हो सकता। मातृभूमि की रक्षा के लिए कहीं कोई मां अपना बेटा अर्पित कर देती है तो कहीं परिवारों में बच्चों के सिर से पिता का बेवक्त साया उठ जाता है। लेकिन अगर सरकारों से तरह के सर्वोच्च बलिदान को जब कोरे आश्वासनों का तिरस्कार मिलता है तो निश्चित तौर पर इन परिवारों का दुख बेपनाह हो जाता है। देश बुधवार को 18वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. नमन है सभी शहीदों को और इनके परिवारों के साहस को.

 

26 जुलाई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान पर हासिल की थी विजय 

बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई, 1999 के दौरान 3 महीने तक हुए कारगिल युद्ध में 26 जुलाई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान पर विजय हासिल की थी। इसलिए इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा देश में जगह-जगह कारगिल युद्ध के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। 18 साल पहले इस सशस्र संघर्ष में भारत के 527 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे और 1300 से अधिक घायल हुए थे। अकेले हिमाचल से इस युद्ध में 52 सपूत वीरगति को प्राप्त हुए थे।

पोस्टऑफिस कोट तहसील नूरपुर के शहीद जगजीत सिंह के परिवार की मानें तो जगजीत सिंह के नाम से जी.एच.एस. कोट पलाहड़ी स्कूल बनाया गया था लेकिन जैसे ही अब यह स्कूल अपग्रेड होकर जी.एस.एस.एस. कोट पलाड़ी में स्तरोन्नत हुआ तो शहीद जगजीत सिंह का नाम हटा दिया गया है। शहीद रोड की हालत भी काफी खस्ता है। यह रोड पलाड़ी से कोट स्कूल तक है तथा पट्टिका भी टूटी हुई है।
न स्कूल का नामकरण हुआ और न सड़क हुई पक्की

बरठीं के झंडूता क्षेत्र की ग्राम पंचायत सुन्हाणी के डूहक गांव के शहीद मस्त राम की पत्नी ब्यासा देवी ने बताया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल द्वारा उन्हें आश्वासन दिया गया था कि राजकीय माध्यमिक पाठशाला डूहक का नाम शहीद मस्त राम के नाम से रख दिया जाएगा तथा घर तक पक्की सड़क का निर्माण किया जाएगा और उसका नाम भी मस्त राम शहीद के नाम से ही रखा जाएगा लेकिन कुछ नहीं हुआ।

शहीद के पिता ने अब तो मांग करनी ही बंद कर दी 

पिता द्वारा शहीद बेटे प्रदीप कुमार कौशल की याद में बनाई गई साढ़े 3 कि.मी. लम्बी सड़क को सरकार पक्का नहीं कर पाई है। करीब 3 लाख रुपए की लागत से सड़क बनाने वाले शहीद के पिता इस मांग को प्रदेश की 3 सरकारों के साथ-साथ हर स्तर पर उठा चुके हैं लेकिन जब मांग पूरी नहीं हुई तो उन्होंने अब मांग करनी ही बंद कर दी। यही नहीं शहीद के नाम पर दिग्गल में बन रहा विश्रामगृह भी पैसे के अभाव में पूरा नहीं बन पाया।

गौर रहे कि उपमंडल नालागढ़ के तहत गांव जोगटी पंदल निवासी सेवानिवृत्त नायब सूबेदार जगन्नाथ कौशल व रामेश्वरी देवी के 23 वर्षीय अविवाहित बेटे प्रदीप कुमार कौशल 9 जुलाई, 1999 में कारगिल के मास्को घाटी में शहीद हो गए थे। बेटे के शहीद होने के बाद पिता ने स्वयं 3 लाख रुपए खर्च करके दिग्गल से जोगटी पंदल गांव तक शहीद प्रदीप कुमार कौशल मार्ग का निर्माण किया था जोकि पक्का होने को तरस रहा है।

दिग्गल में 5 अप्रैल, 2001 को विश्रामगृह काम शुरू हुआ लेकिन धन अभाव के कारण इसका भी काम लटका हुआ है। शहीद के पिता पूर्व सैनिक जगन्नाथ कौशल ने बताया कि शहीद प्रदीप कुमार कौशल सड़क को पक्की करने व विश्रामगृह का काम पूरा करने की मांग करते-करते थक गए लेकिन उनकी ये मांगें पूरी नहीं हईं तथा मजबूरन उन्हें चुपचाप बैठना पड़ा।