मंडी : हिमाचल प्रदेश के जंगली क्षेत्रों में पाया जाने वाले औषधीय गुणों से भरपूर प्राकृतिक फल काफल ने मंडी जिला के बाजारों में दस्तक दे दी है। इस सीजन की काफल के फल की खेप रविवार को सेरी मंच मंडी पर पहुंच गई है। काफल फल के शुरुआती दाम 400 रुपए प्रति किलोग्राम है।
सीजन के शुरुआती दौर में काफल फल के दाम ज्यादा होते है। लेकिन जैसे-जैसे दूसरे क्षेत्र से काफल की खेप पहुुंचना शुरु होती है तो दामों में भी कमी आ जाती है।
हालाँकि शुरुआती दौर में काफल कम पहुंच हैं। बता दें कि काफल फल की खेप सुबह करीब चार से पांच बजे तक पहुंच जाता है।
करीब पांच बजे के बाद काफल फल टोकरियों में शहर के हर कोने-कोने में सज जाता है। हर वर्ष मई से मई-जून माह के बीच काफल पककर तैयार हो जाता है।
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इसके उपरांत ग्रामीण जंगलों में काफल फल के एक-एक दाने को बड़ी सावधानी से तोड़ते है। सुबह-सवेरे ग्रामीण गाड़ियों में लोड़ करके काफल को बाजारों तक पहुंचाते हैं।
इस फल में औषधीय गुणों की भरमार है। कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। काफल से स्फूर्ति वर्धक पेय बनता है। काफल का फल ही नहीं पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है।
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जो कुदरत की अनमोल देन है। इससे मनुष्य के शरीर से जुड़े अनेक विकार ठीक हो सकते हैं। काफल की खेती किसी मनुष्य नहीं बल्कि कुदरती तौर पर यह हिमाचल के जंगलों में पनपता है। हर साल हजारों क्विंटल काफल बाजार में बिकता है।
काफल के कारण प्रतिवर्ष स्थानीय लोग बड़ी मात्रा में इसकी खेप को आसपास के स्थानीय बाजारों में पहुंचाकर काफी लाभ अर्जित करते हैं। काफल फल में कई तरह के प्राकृतिक तत्वों जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स से भी परिपूर्ण है।
इसकी पत्तियों में लावेन-4, हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है। काफल के पेड़ की छाल, फल तथा पत्तियां भी औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है।
ऐसी होती है फल की तासीर
काफल खाने में स्वादिष्ठ रंग में हरा, लाल और काले रंग का फल है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है, साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
इसका काढ़ा दमा, अतिसार, बुखार, पुरानी फेफड़ों की सूजन, रक्तातिसार जैसे रोगों में लाभदायक है। काफल के पेड़ की छाल चबाने से हल्के दांत दर्द को आराम मिलता है। खांसी, मसूड़े का दर्द, कान दर्द, बबासीर तथा गले के दर्द में भी गुणकारी है।
यह है वैज्ञानिक नाम
काफल फल का हर जगह स्वाद एक है। लेकिन नाम हर जगह अलग-अलग है। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलेंटा के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल से लेकर गढ़वाल कुमाऊं व नेपाल में इसके काफी बड़े-बड़े पेड़ पाए जाते हैं।
आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है जबकि अंग्रेजी बाक्समिर्टल के नाम से जाना जाता है। इसका खट्टा मीठा स्वाद बहुत मनभावन और उधर विकारों में बहुत लाभकारी होता है। जबकि मेघालय में इसे सोह-फी के नाम से जाना जाता है।
यहां-यहां से पहुंचता है काफल
मंडी जिला से हर वर्ष भारी मात्रा में प्रदेश के अन्य जिलों में काफल फल की खेप पहुंचती है। मंडी जिला के कटौला, गोहर, मोवीसेरी, तुंगलघाटी, चौहारघाटी और जनीतरी, कफलवानी धार और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों के जंगलों में काफल की पैदावार होती है।
इसके अलावा, यह जंगली फल उत्तराखंड के कई इलाकों में भी मिलता है। इसमें विशेष बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में काफल केवल मंडी जिला के दुर्गम क्षेत्रों में ही पाया जाता है।
मधुमेह, ब्लड प्रेशर में लाभदायक
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. अभिषेक कौशल का कहना है कि काफल में विटामिन्स, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंन्टस प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि काफल फल मधुमेह, ब्लड प्रेशर व पेट की कई बीमारियों को दूर करने में लाभकारी भी है।