सरकारी कर्मचारी-पेंशनर हिमकेयर से बाहर

जिस हिमकेयर स्कीम में कैशलेस इलाज के लिए राज्य के करीब 17 लाख लोग पंजीकृत हैं, उसमें हिमाचल सरकार ने कुछ संशोधन किए हैं।

अब सरकारी कर्मचारी और पेंशनर इस योजना से बाहर हो गए हैं, यदि उनके कार्ड बने भी हुए हैं, तो भी फ्री इलाज का क्लेम सेटल नहीं होगा।

राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री हिमाचल हेल्थ केयर योजना के तहत लाभार्थी सत्यापन फार्म लागू कर दिया है। इस फार्म के जरिए लाभार्थी को यह बताना होगा कि उनके परिवार से कोई सदस्य सरकारी या सेवानिवृत्त कर्मचारी है या नहीं? यदि सरकारी कर्मचारी या पेंशनर का अपना कार्ड बना है, तो भी क्लेम सेटल नहीं होगा।

क्योंकि कर्मचारियों और पेंशनरों को राज्य सरकार चिकित्सा प्रतिपूर्ति योजना के तहत लाभ देती है, इसलिए डबल बेनेफिट वापस लिया जा रहा है।

यदि परिवार से कोई कर्मचारी या पेंशनर है, तो क्लेम उसी सूरत में क्लियर होगा, यदि लाभार्थी कर्मचारी पर आश्रित नहीं है। हिम केयर योजना में कुछ और बदलाव भी किए गए हैं।

यह व्यवस्था पहले से है, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। बड़ा बदलाव यही है कि सरकारी कर्मचारी और पेंशनर या उनकी फैमिली में अब कार्ड ही नहीं बनेगा।

इस सुधार को लेकर पहले से चर्चा हो रही थी। स्वास्थ्य विभाग ने जब आईजीएमसी में इलाज ले चुके लोगों की केस स्टडी करवाए, तो भी डबल बेनेफिट के मामले सामने आए थे। वर्तमान में हिम केयर के तहत आईपीडी मरीज को पांच लाख रुपए तक का इलाज कैशलेस मिलता है।

एमएस-प्रिंसीपल-सीएमओ जारी कर सकेंगे 100 कार्ड

राज्य के सरकारी अस्पतालों या मेडिकल कालेज में यदि कोई गरीब व्यक्ति बिना हिम केयर कार्ड आता है, तो ये अस्पताल ही ऐसे मरीज का कार्ड बनवा सकेंगे।

राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए हैं कि मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिटेंडेंट, प्रिंसीपल या फील्ड अस्पताल की सूरत में सीएमओ के पास 100 हिम केयर कार्ड बनाने का कोटा होगा।

कार्ड बनाने के लिए जो औपचारिकता तय की गई है, उन्हें पूरा करते हुए अस्पताल ही कार्ड बनवा देंगे, ताकि जरूरतमंद को फ्री इलाज की सुविधा मिल जाए। बता दें कि हिम केयर स्कीम में वर्तमान में 16 लाख 70 हजार लोगों का पंजीकरण है।

इसमें राज्य के पांच लाख से ज्यादा परिवार शामिल हैं। लगातार बढ़ते मरीजों के कारण राज्य सरकार का खर्चा भी इस स्कीम में बढ़ रहा है।

अभी भी 358 करोड़ के क्लेम पेंडिंग चल रहे हैं। इसमें निजी अस्पतालों के 111 करोड़ और सरकारी अस्पतालों के 247 करोड़ लंबित हैं।

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