बैजनाथ : भगवान शिव का मंदिर कांगड़ा घाटी में बैजनाथ क्षेत्र में शिवधाम के नाम से प्रसिद्ध है. शिवरात्रि पर्व के दौरान इस मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ जुटती है. इस मंदिर का निर्माण नवमी शताब्दी में मयूक और अहूक नामक दो भाइयों ने करवाया था.
इस मंदिर की कला शैली को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है.कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. 1905 के भूकम्प ने काँगड़ा में तबाही मचाई थी तो इस मंदिर को उस समय आंशिक रूप से नुक्सान पहुंचा था.
इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. इस मंदिर का सम्बन्ध रावण से जोड़ा जाता है. यहाँ वर्षभर देश के कोने -कोने से श्रद्धालु आते हैं और इस पवित्र स्थान के दर्शन मात्र से ही धन्य हो जाते हैं.
कैलाश पर की थी रावण ने घोर तपस्या
किववदंती के अनुसार राम-रावण युद्ध के दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या की और रावण ने शिव से लंका चलने का वरदान माँगा ताकि युद्ध में विजय हासिल की जा सके.
रावण की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पिंडी के रूप में रावण के साथ चलने का वचन दिया लेकिन शर्त रखी कि इस पिंडी को जमीन में रखे बगैर लंका पहुंचा दे लेकिन रावण ऐसा कर न सका और शिवलिंग बैजनाथ में स्थापित हो गया.
नवमी शताब्दी का बना है मंदिर
बैजनाथ शिव मन्दिर कलकल बहती बिनवा नदी के किनारे नवमी शताब्दी का बना हुआ है. शिखराकर शैली से बने इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में अनूठी है.
यहाँ नहीं मनाया जाता दहशरा
बैजनाथ में स्थित भगवान शिव मंदिर का सम्बन्ध रावण की तपस्या से जोड़ा जाता है इस कारण यहाँ दहशरा नहीं मनाया जाता है.
वर्षभर आते हैं श्रद्धालु
शिवमंदिर बैजनाथ मंदिर में श्रद्धालु वर्षभर आते हैं तथा अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं. मंदिर में एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र है.
रावण के तप से जुड़ा है इतिहास
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग का इतिहास रावण के तप से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था लेकिन इस जगह लघुशंका आने पर रावण ने इस शिवलिंग को एक चरवाहे से पकड़ा दिया था.
काफी देर तक रावण ने लौटा तो चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और शिवलिंग यहीं पर स्थापित हो गया.
सुनार की नहीं है कोई भी दुकान
बैजनाथ नगरी में दो बातें अचम्भित करने वाली हैं.बैजनाथ क्षेत्र में लगभग 700 व्यापारिक संस्थान हैं लेकिन कस्बे में कोई भी सुनार की दूकान नहीं है.ऐसा कहा जाता है कि यहाँ सोने का व्यापर करने पर सोना काला हो जाता है जिसके चलते दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ती हैं.
दूसरा जब पूरे भारत में दहशरा पर्व मनाया जाता है तो इस क्षेत्र में न दहशरा मनाया जाता है न ही रामलीला का मंचन होता है.
इसके अलावा रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. अगर कोई यहाँ रावण का पुतला जलाता है तो उस पर घोर विपत्ति आती है या वो काल का ग्रास बन जाता है.
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