जोगिन्दरनगर : हिमाचल प्रदेश देवों की भूमि है. यहाँ हर गाँव में कोई न कोई मंदिर स्थित है जो लोगों की आस्था के केंद्र हैं. ये मंदिर हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं तथा इन मंदिरों में लोगों की विशेष आस्था है. आज जरूरत है युवा पीढ़ी को आगे आने की ताकि हमारी संस्कृति और धरोहरों को बचाकर रखा जाये और आने वाली पीढ़ियाँ भी इस संस्कृति से रूबरू हो सके.
लोगों की आस्था का केंद्र होते हैं मंदिर
लोग भी पूरी श्रद्धा के साथ अपने अपने देवों का पूजन करते हैं. ऐसे ही लडभड़ोल क्षेत्र में कई ऐसे मंदिर हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र बन चुके हैं चाहे वह माँ सिमसा का मंदिर हो या कुड महादेव या फिर त्रिवेणी महादेव का मंदिर. लेकिन लडभड़ोल क्षेत्र में ऐसे कई मंदिर भी हैं जो अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं. अगर इन मंदिरों पर स्थानीय लोगों ने ध्यान नहीं दिया तो ये मंदिर अपनी पहचान के मोहताज़ हो जायेंगे जिसके लिए लोग जिम्मेवार होंगे.
लुप्त होने के कगार पर है यह मंदिर
लडभड़ोल क्षेत्र के त्रैम्बली पंचायत के तहत कड़कूही, चौक तथा गदयाड़ा गाँव की सुन्दर पहाड़ी में स्थित है दानी देवता का यह मंदिर. स्थानीय लोगों के अनुसार दानी देवता का यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र रहा है . वर्तमान में यह मंदिर अपनी पहचान खोने पर मजबूर है. मंदिर की दीवारें जर्जर हो चुकी हैं, दरवाजा टूट चूका है तथा यह मंदिर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.
वर्षों पुराना है यह मंदिर
कड़कूही, चौक तथा गदयाड़ा गाँव के लोगों की आस्था का केंद्र वर्षों पुराना है. स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर लगभग 100 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण इन तीन गाँव के लोगों के पूर्वजों के करवाया था लेकिन आज यह मंदिर अपना अस्तित्व खो रहा है. स्थानीय लोगों के अनुसार दानी देवता को वर्षा,फसल तथा सुख समृद्धि का देवता मन जाता है. जब किसी घर में शादी -ब्याह या अन्य शुभ कार्य होता है तो इस मंदिर में जातर देकर देवता का आशीर्वाद लिया जाता है.
युवा पीढ़ी की अनदेखी का शिकार
हमारी संस्कृति और धरोहरों को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी केवल आने वाली पीढियों की है. युवा पीढ़ी की अनदेखी इन धरोहरों पर भारी पड़ सकती है. अगर इसी तरह इन धरोहरों को नजरअंदाज किया जाता रहा तो ये आस्था के मंदिर अपना अस्तित्व खो देंगे जिसके लिए काफी हद तक युवा पीढ़ी ही जिम्मेवार होगी.
संस्कृति का संरक्षण है जरूरी
वर्तमान में युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से विमुख होती जा रही है जोकि हमारी संस्कृति के लिए घातक है. आज जरूरत है कि युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति तथा धरोहरों का संरक्षण करे ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इन धरोहरों के बारे में जानकारी हो सके. लेकिन यह तभी सम्भव है जब इन सब चीजों को सुरक्षित रखने के लिए समय निकालना पड़ेगा.