आज भाईदूज के पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. सनातन धर्म में रक्षाबंधन की तरह ही भाईदूज का भी विशेष महत्त्व होता है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं। भाई की लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए पहले पूजा की थाली, फल, फूल, दीपक, अक्षत, मिठाई, सुपारी आदि चीजों से सजा लें।
इसके बाद घी का दीपक जलाकर भाई की आरती करें और शुभ मुहूर्त देखकर तिलक लगाएं। तिलक लगाने के बाद भाई को पान, मिठाई आदि चीज खिलाएं। तिलक और आरती के बाद भाई को अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए और उन्हें उपहार गिफ्ट करें।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस वर्ष भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:10 से 3:21 बजे तक है। यानि शुभ मुहूर्त की कुल अवधि दो घंटे 11 मिनट तक है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भाईदूज के अवसर पर जब बहनें भाई को तिलक लगाती हैं, तो भाई के जीवन पर आने वाले हर प्रकार के संकट का नाश हो जाता है और उसके जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। तथा इस दिन बहन के घर भोजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
भाईदूज को लेकर एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा को संतान की प्राप्ति हुई। पुत्र का नाम यम और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा भगवान सूर्यदेव का तप सहन नहीं कर पाती थी, ऐसे में वह अपनी छाया उत्पन्न कर पुत्र और पुत्री को उसे सौंपकर मायके चली गई।
छाया को अपनी संतानों से कोई मोह नहीं था, लेकिन भाई-बहन में आपस में बहुत प्रेम था। यमुना शादी के बाद हमेशा भाई को भोजन पर अपने घर बुलाया करती थी, लेकिन व्यस्तता के कारण यमराज यमुना की बात को टाल दिया करते थे। क्योंकि उन्हें अपने कार्य से इतना समय नहीं मिल पाता था कि वह अपनी बहन के यहां भोजन के लिए जा सकें।
बहन के काफी जिद के बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमुना से मिलने उनके घर पहुंचे। यमुना ने उनका स्वागत सत्कार कर माथे पर तिलक लगाकर भोजन करवाया। बहन के आदर सत्कार से प्रसन्न होकर यमदेव ने उनसे कुछ मांगने को कहा, तभी यमुना ने उनसे हर साल इसी दिन घर आने का वरदान मांगा।
यमुना के इस निवेदन को स्वीकार करते हुए यम देव ने उन्हें कुछ आभूषण और उपहार दिया। मान्यता है कि इस दिन जो भाई बहन से तिलक करवाता है, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।