विधानसभा चुनाव में आठ दिसंबर को सामने आ रहे नतीजे में किसी की हैट्रिक खतरे में है, तो किसी का सिक्सर। वर्तमान विधानसभा में 11 नेता लगातार तीसरा चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाना चाहते हैं। 25 नेता लगातार चौथा चुनाव जीतकर चौका लगाने को उत्सुक हैं। इस बार की चुनावी जीत से सिक्सर सिर्फ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का लगेगा।
हालांकि पांचवीं जीत की तलाश में भी तीन राजनेता इस चुनाव में हैं। यदि जीत की हैट्रिक की बात करें, तो सुजानपुर से राजेंद्र राणा 2012 और 2017 में दो चुनाव जीत चुके हैं। अब तीसरे चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं।
यदि इस बार जीते, तो हैट्रिक होगी। यही स्थिति बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल, सोलन से कर्नल धनीराम शांडिल, रेणुकाजी से कांग्रेस विधायक विनय कुमार, शिमला के कुसुम्पटी से कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध सिंह, रोहडू से मोहनलाल ब्राक्टा, चंबा के चुराह से भाजपा के हंसराज, भटियात से भाजपा के बिक्रम सिंह जरियाल, कांगड़ा से भाजपा उम्मीदवार पवन काजल, नाचन से भाजपा विधायक विनोद कुमार और चौपाल से भाजपा विधायक बलबीर वर्मा की है।
इनमें से पवन काजल, बलवीर वर्मा और राजेंद्र राणा शुरुआत निर्दलीय विधायक के तौर पर कर चुके हैं। यदि लगातार जीत के चौके की बात करें तो कांगड़ा की शाहपुर सीट से सरवीन चौधरी इससे पहले 2007, 2012 और 2017 में तीन चुनाव जीत चुकी हैं। यदि इस बार भी जीतीं, तो यह चौका होगा।
यही स्थिति गोविंद सिंह ठाकुर की कुल्लू में है, जो 2007 में कुल्लू से जीते थे और अगले दो चुनाव मनाली सीट से। मंडी सदर से अनिल शर्मा बेशक पार्टी बदल चुके हों, लेकिन उनके लिए भी चौथी जीत की चुनौती है। कसौली से डा. राजीव सैजल और रामपुर से नंदलाल को भी लगातार चौथी जीत की तलाश है।
यदि लगातार पांचवीं जीत की बात करें तो हरोली सीट से मुकेश अग्निहोत्री 2003, 2007, 2012 और 2017 में चुनाव जीत चुके हैं। इनमें से पहले दो चुनाव संतोषगढ़ सीट से थे और आखिर के दो चुनाव हरोली सीट से। इसी तरह ऊना की कुटलेहड़ सीट से वीरेंद्र कंवर हैं, जो वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे। वह भी 2003 से 2017 तक लगातार चार चुनाव जीत चुके हैं।
डा. राजीव बिंदल की भी यही स्थिति है, जो 2003 और 2007 का चुनाव सोलन से जीतने के बाद 2012 और 2017 के चुनाव नाहन से जीत चुके हैं। इनको भी पांचवीं जीत की तलाश है। इस पूरे चुनाव में सिक्सर का इंतजार सिर्फ जयराम ठाकुर को है। जयराम ठाकुर जीवन का पहला चुनाव 1993 में लड़े थे और मोतीराम से हार गए थे।
इसके बाद 1998 में उन्होंने चुनाव जीता और फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा। हालांकि इनके भी पहले तीन चुनाव चच्योट से थे, जो बाद में बदलकर सराज हो गया था। इस बार उनको छठी जीत का इंतजार है।
सात चुनाव लड़े, कभी नहीं हारे गुमान सिंह चौहान
कांग्रेस के दिग्गज नेता ठाकुर रामलाल की तरह ही सिरमौर जिला के शिलाई और पांवटा से चुनाव लड़ते रहे गुमान सिंह चौहान भी कांग्रेस के ऐसे नेता थे, जो अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं हारे। गुमान सिंह चौहान हिमाचल प्रदेश टेरिटोरियल काउंसिल के लिए 1957 और 1962 में चुने गए और उन्होंने पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में जोडऩे के लिए शाह कमीशन के सामने बात रखी।
वह 1967, 1972, 1977, 1982 और 1985 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। इस अवधि में कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री हुए, जिनमें डा. वाईएस परमार, ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह शामिल थे।
गुमान सिंह चौहान 1969 में चीफ पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी बने। फिर 1977 में परिवहन राज्य मंत्री रहे और 1980 से 1982 के बीच में परिवहन मंत्री रहे। इसके बाद 1985 तक वह कृषि मंत्री भी रहे। उनके निधन के बाद गुमान सिंह चौहान की राजनीतिक विरासत को अब हर्षवर्धन चौहान संभाल रहे हैं।